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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
चारुचन्द्रसूरि
वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १५२७ - १५४०, (वि०सं० १५३१-१५३४, प्रतिमालेख)
प्रतिमालेख) (वि० सं० १५५४/ई. सन् १४९८ में लिपिबद्ध की गयी भक्तामरस्तवव्याख्या
की दाता प्रशस्ति में उल्लिखित) चैत्रगच्छ की शाखायें
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से चैत्रगच्छ की कई शाखाओं का पता चलता है। इनका अलगअलग विवरण इस प्रकार है :
१. भर्तृपुरीयशाखा : जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, चैत्रगच्छ की इस शाखा का नामकरण भर्तृपुर (वर्तमान भटेवर, राजस्थान) नामक स्थान से हुआ प्रतीत होता है । इस शाखा से सम्बद्ध चार लेख मिले हैं, प्रथम लेख वि० सं० १३०३ का है और करेड़ा से प्राप्त हुआ है। द्वितीय लेख वि० सं० १३३४ / ई. सन् १२७८ का है और चित्तौड़ से प्राप्त हुआ है। तृतीय लेख वि० सं० १३३८ का है। चतुर्थ लेख... १४ का है, अर्थात् इसके प्रथम दो अंक नष्ट हो गये हैं । श्री पूरनचन्द नाहर और विजयधर्मसूरि ने वि० सं० १३०३ / ई. सन् १२४७ के लेख की वाचना इस प्रकार दी है१२:
"संवत् १३०३ वर्षे चैत्र वदि ४ सोमदिने श्रीचैत्रगच्छे श्रीभद्रेश्वरसंताने भर्तृपुरीयवत्स श्रे० भीम अर्जुन कडवट श्रे० चूडा पुत्र श्रे० वयजा धांधल पासड उदाविभिः कुटुंबसमेतैः ... प्रतिमा कारिता प्रति० श्री जिनेश्वरसूरिशिष्यैः श्रीजिनदेवसूरिभिः ॥"
तीर्थङ्कर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
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