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चैत्रगच्छ
४८१ भक्तामरस्तवव्याख्या (रचनाकाल वि० सं० १५२४ /ई. सन् १४६८) के कर्ता चैत्रगच्छीय गुणाकरसूरि का नाम आ चुका है। किन्तु वे किसके शिष्य थे, यह बात उक्त साक्ष्य से ज्ञात नहीं होता। अभिलेखीय साक्ष्यों में जयानन्दसूरि के पट्टधर मुनितिलकसूरि (वि० सं० १५०१-१५०८, प्रतिमा लेख) के शिष्य गुणाकरसूरि (वि० सं० १४९९ - १५१९, प्रतिमालेख) का उल्लेख मिलता है। अतः समसामयिकता के आधार पर मुनितिलकसूरि के पट्टधर गुणाकसूरि को सम्यक्त्वकौमुदी आदि के कर्ता गुणाकरसूरि से अभिन्न माना जा सकता है।
जयानन्दसूरि
मुनितिलकसूरि (वि० सं० १५०१ - १५०८) प्रतिमालेख
गुणाकरसूरि (वि०सं० १४९९ - १५१९) प्रतिमालेख
(वि० सं० १५०४ / ई. सन् १४४८ में सम्यक्त्वकौमुदी और वि. सं. १५३४/ई. सन् १४६८ में
भक्तामरस्तवव्याख्या के रचनाकार) ठीक इसी प्रकार चैत्रगच्छीय सोमकीर्तिसूरि के शिष्य चारुचन्द्रसूरि (वि० सं० १५२७-१५४०, प्रतिमालेख) और वि० सं० १५५४ / ई. सन् १४९८ में प्रतिलिपि की गयी भक्तामरस्तवव्याख्या की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित चैत्रगच्छीय चारुचन्द्रसूरि एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं :
सोमकीर्तिसूरि (वि० सं० १५२७-१५४२, प्रतिमालेख)
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