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चैत्रगच्छ
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चैत्रगच्छ से सम्बद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य इसके ८० वर्ष पश्चात् का है। यह वि० सं० १६०४ में प्रतिलिपि की गयी मेघदूत की प्रतिलेखन प्रशस्ति है, जो आज श्री जैन सं० ज्ञान भंडार, पाटन में संरक्षित है । श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने इस प्रशस्ति का मूलपाठ दिया है, जो इस प्रकार है
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सं० १६०४ वर्षे वैशाख सुदि २ भूमवासरे श्री चैत्रगच्छे भ० श्री ६ नयकीर्तिसूरि सूरिन्द्रान तत् शिष्यमु० विनयकीर्तिलिखितं स्ववाचनाय, चित्रांगददुर्ग मध्ये | श्रीरस्तु ॥ श्री ॥
अर्थात् चैत्रगच्छीय नयकीर्तिसूरि के शिष्य विनयकीर्ति ने वि० सं० १६०४ वैशाख सुदि २ मंगलवार को चित्रांगददुर्ग (चितौड़गढ) में स्वपठनार्थ मेघदूत की प्रतिलिपि की ।
श्री प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ३७३, पृष्ठ १०२. चैत्रगच्छ से सम्बद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य इसके २० वर्ष पश्चात् अर्थात् वि० सं० १६२४ में लिपिबद्ध की गयी लघुक्षेत्रसमास की प्रतिलेखन प्रशस्ति का है । यह प्रति अद्यावधि नि० वि० जी० मणि पुस्तकालय चाणस्मा में संरक्षित है। श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने इस प्रशस्ति की भी वाचना दी है, जो इस प्रकार है
इति क्षेत्रसमासप्रकरणं समाप्तमेति ॥ श्री ॥ संवत् १६२४ वर्षे माघ वदि १२ मंदवासरे ॥ श्री चैत्रगच्छे भ० ॥ श्रीः ५ विनयचंद्रसूरि ॥ वाचनाचार्य वा० श्री श्री ५ अभयचंद्र तत् शिष्य मुनि अमरचंद्रेण लिखितं ॥ श्री वालीसादेशे श्री वोहिया शुभस्थाने वालीसा श्री कान्हजी विजयराज्ये ॥ श्री रस्तु ॥ कल्याणं ॥ द्य ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीः ॥ द्य ॥ श्रीः ॥
श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ४५८, पृष्ठ १२०. अर्थात् चैत्रगच्छीय विनयचन्द्रसूरि के समय वाचनाचार्य अभयचन्द्र के शिष्य अमरचन्द्र ने वि० सं० १६२४ माघ वदि १२ को लघुक्षेत्रसमास
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