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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की प्रतिलिपि की । आचार्य विनयचंद्रसूरि और वाचनाचार्य अभयचन्द्र के बीच गुरुभ्राता अथवा गुरु-शिष्य का सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रशस्ति से स्पष्ट नहीं होता ।
दशवैकालिकसूत्र की वि० सं० १७६८ / ई० सन् १७१२ में लिखी गयी एक प्रति की दाताप्रशस्ति' में चैत्रगच्छ की देवशाखा का उल्लेख है । यह प्रति उक्त शाखा के आचार्य रत्नदेवसूरि के पट्टधर सौभाग्यदेवसूरि की परम्परा के मुनि बेलजी के पठनार्थ लिखी गयी थी । चैत्रगच्छ से सम्बद्ध कुल यही साहित्यिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घाघसा' के वि० सं० १३२२ एवं चीरवा के वि० सं० १३३० के शिलालेखों के रचनाकार रत्नप्रभसूरि भी चैत्रगच्छ से ही सम्बद्ध थे । उक्त लेख यद्यपि जैन धर्म से सम्बद्ध नहीं है, किन्तु इनमें मेवाड़ के गुहिल शासकों पद्मसिंह, जैत्रसिंह और समरसिंह की उपलब्धियों का वर्णन है । इन लेखों के रचनाकार चैत्रगच्छीय रत्नप्रभसूरि द्वारा लेख के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा, गच्छ का नाम, लेख का समय आदि का सुन्दर विवरण दिया गया है जो इस प्रकार है
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भद्रेश्वरसूरि
I
देवभद्रसूरि
1 सिद्धसेनसूरि
जिनेश्वरसूरि
I विजयसिंहसूरि
भुवनचन्द्रसूरि
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