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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास आवश्यक सूत्र की
प्रतिलिपि की गयी)
३. उत्तराध्ययनसूत्र की पुस्तक प्रशस्ति - चन्द्रगच्छीय रत्नाकरसूरि ने वि० सं० १३०८ / ईस्वी सन् १२५२ में उत्तराध्ययनसूत्र की प्रतिलिपि की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली दी है, जो निम्नानुसार है :
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J
नन्नसूरि
I
वादिसूरि 1
सर्वदेवसूरि
I
प्रद्युम्नसूरि I
भद्रेश्वरसूरि
T देवभद्रसूरि
सिद्धसेनसूरि
1
यशोदेवसूरि
मानदेवसूरि
|
रत्नप्रभसूरि T देवप्रभसूरि |
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