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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कालकाचार्यकथा के रचनाकार विनयचंद्रसूरि तपागच्छ के थे । इन्होंने वि० सं० १३२५ / ईस्वी सन् १२६९ में पर्युषणाकल्प पर निरुक्त की रचना की। बारहव्रतरास (वि० सं० १३३८/ ई. सन् १२८२) और नेमिनाथचतुष्पदिका भी इन्हीं की कृतियां हैं।०२।।
प्राध्यापक चौधरी ने पार्श्वनाथचरित के रचनाकार विनयचंद्रसूरि का परिचय देते समय उन्हें उक्त सभी कृतियों का रचयिता बतलाया हैं,७३ जो न केवल भ्रामक है बल्कि सत्य से पर है। बाद में लिखे गये कुछ ग्रंथों में भी उक्त त्रुटिपूर्ण विवरण को अक्षरशः दुहराया गया है। वस्तुतः एक ही समय में एक ही नाम वाले एक से अधिक ग्रन्थकारों के हो जाने तथा उनके द्वारा रचनाकाल आदि का स्पष्ट उल्लेख न होने से ऐसा भ्रम उत्पन्न हो जाना सामान्य बात है किंतु मूल साक्ष्यों के आधार पर इसका निराकरण भी सम्भव है।
७. प्रद्युम्नसूरि - ये चंद्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के शिष्य थे। जैसा कि इस निबन्ध के प्रारम्भिक पृष्ठों में ही कहा जा चुका है इन्होंने वि० सं० १३२४ / ई. सन् १२६८ में समरादित्यसंक्षेप की संस्कृत भाषा में रचना की । इसके अतिरिक्त इन्होंने वि० सं० १३२८ / ई. सन् १२७२ में प्रवज्याविधानटीका की भी रचना की।५ इन्होंने उदयप्रभसूरि, मुनिदेवसूरि, विनयचंद्रसूरि, प्रभाचंद्रसूरि आदि ग्रन्थकारों की कृतियों का संशोधन भी किया। संदर्भ सूची: १. प्रभावकचरित संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई विविध
गच्छीयपट्टावलीसंग्रह संपा० मुनि जिनविजय, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६१ ईस्वी सन्, पृष्ठ ६१, १७८ आदि. U. P. Shah - Akota Bronzes, State Board for Historical Records and Ancient Monuments Archaelogical Series, No. 1, Bombay 1959 A. D. Pp. 28, 39, 66
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