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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ६. प्रशमरतिप्रकरणवृत्ति की प्रतिलिपि प्रशस्ति संघवीपाड़ा भंडार पाटन में संरक्षित और वि० सं० १४९८ / ईस्वी सन् १४४१ में लिखी गयी उक्त कृति की प्रतिलिपि प्रशस्ति में चन्द्रगच्छीय मुनिजनों की एक छोटी गुर्वावली मिलती है, जो निम्नानुसार है :
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४१२
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चन्द्रगच्छीय पूर्णचन्द्रसूरि
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महंससूरि
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| हेमसारगणि
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हेममेरुगणि
प्रतिलिपिकार)
उक्त प्रशस्ति से यह भी पता चलता है कि प्रतिलिपिकार ने उक्त ग्रन्थ के त्रुटित अंश को भी पूर्ण किया था ।
७. जीवाभिगमसूत्र की प्रतिलिपि प्रशस्ति - चन्द्रगच्छीय वाचनाचार्य संयमहंस ने वि० सं० १६०५ / ई० सन् १५४९ में उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिप की, जिसकी प्रशस्ति२४ में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्नानुसार दी है :
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(वि० सं० १४९८ / ई० सन् १४४१ में प्रशमरतिप्रकरणवृत्ति के
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वादी चक्रचूड़ामणि जिनप्रभसूरि
I जिनतिलकसूरि
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