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चन्द्रगच्छ
৪০9 यद्यपि रचनाकार ने अपनी इस कृति में रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है, फिर भी विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इसे वि० सं० की १४ वीं शती के प्रथम चरण की कृति माना जा सकता है।
८. समरादित्यसंक्षेप - यह आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित समराइच्चकहा (प्राकृत भाषामय) का संस्कृत भाषा में रचित छंदोबद्धसार है जिसे चन्द्रगच्छीय कनकप्रभसूरि के विद्वान् शिष्य प्रद्युम्नसूरि ने वि० सं० १३२४/ईस्वी सन् १२५८ में रचा है । प्रद्युम्नसूरि ने अनेक ग्रन्थों का संशोधन किया । कृति के अन्त में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल आदि का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है :
प्रद्युम्नसूरि (प्रथम)
चन्द्रप्रभसूरि
धनेश्वरसूरि
शांतिसूरि
देवभद्रसूरि
देवाणंदसूरि
रत्नप्रभसूरि
परमानन्दसूरि
कनकप्रभसूरि
जयसिंहसूरि
बालचंद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि (द्वितीय)
(वि० सं० १३२४/ई० सन् १२५८
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