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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वर्धमानसूरि
जिनेश्वरसूरि
बुद्धिसागरसूरि
जिनचन्द्रसूरि
अभयदेवसूरि (वि०सं० ११२५/
(संवेगरंगशाला की ई. सन्० १०६९ में
रचना के प्रेरक) संवेगरंगशाला के रचनाकार
३. व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति - चन्द्रकुल के आचार्य वर्धमानसूरि के प्रशिष्य और जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि ने वि० सं० ११२८/ईस्वी सन् १०७२ में इस कृति की रचना की । अभयदेवसूरि ने व्याख्याप्रज्ञप्ति सहित ९ अंग ग्रन्थों पर वृत्तियां रची हैं, इसी कारण ये नवाङ्गवृत्तिकार के रूप में विख्यात रहे हैं। व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति की प्रशस्ति में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल, रचनास्थान आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
वर्धमानसूरि
जिनेश्वरसूरि
बुद्धिसागरसूरि
अभयदेवसूरि (वि० सं० ११२८/ईस्वी सन् १०७२ में
___ व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति के रचनाकार) ४. सणंकुमारचरिय (सनत्कुमारचरित ) श्वेताम्बर जैन परम्परा में सनत्कुमार की चौथे चक्रवर्ती के रूप में मान्यता है। इनके जीवनचरित
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