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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जयसिंहसूरि
चन्द्रप्रभसूरि
(पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक तथा दर्शनशुद्धि के रचनाकार
धर्मघोषसूरि
विमलगणि (वि० सं० ११८१/
ई. सन्० ११२५ में दर्शनशुद्धिवृत्ति के
रचनाकार) उक्त दोनों प्रशस्तियों से प्राप्त गुर्वावली से स्पष्ट होता है कि उनमें प्रथम दो नाम सर्वदेवसूरि और जयसिंहसूरि समान हैं तथा जयसिंहसूरि के एक शिष्य चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ अस्तित्व में आया एवं द्वितीय शिष्य देवेन्द्रसूरि की शिष्य मंडली में सनत्कुमारचरित के रचनाकार श्रीचंद्रसूरि (प्रथम) हुए।
५. उपदेशकन्दलीटीका - यह चन्द्रगच्छीय हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचंद्रसूरि द्वारा रची गयी है। इनके द्वारा रची गयी कुछ अन्य कृतियां भी मिलती हैं, जैसे वसन्तविलासमहाकाव्य, विवेकमंजरीवृत्ति, करुणावज्रायुधनाटक आदि । उपदेशकन्दलीटीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है, जो इस प्रकार है:
प्रद्युम्नसूरि
(तलवाटक के राजा के उपदेशक)
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