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चन्द्रगच्छ
४०३ पर विभिन्न जैन ग्रन्थकारों की कृतियां उपलब्ध होती हैं । इनमें सबसे प्राचीन है चन्द्रगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रचित सणंकुमारचरिय है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु - परम्परा, रचनाकाल आदि का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है :
सर्वदेवसूरि
जयसिंहसूरि
चन्द्रप्रभसूरि
देवेन्द्रसूरि
यशोभद्रसूरि श्रीचंद्रसूरि यशोदेवसूरि श्रीचंद्रसूरि जिनेश्वरसूरि 'प्रथम'
'द्वितीय (वि० सं० १२१४ में सनत्कुमारचरित
के रचनाकार) इसी प्रकार पूर्णिमापक्षीय विमलगणि द्वारा रचित दर्शनशुद्धिवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५) की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि पूर्णिमागच्छ या पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक तथा विमलगणि के प्रगुरु चन्द्रप्रभसूरि चन्द्रकुल के सर्वदेवसूरि के प्रशिष्य तथा जयसिंहसूरि के शिष्य थे। इस प्रशस्ति में दी गयी गुरु-परम्परा इस प्रकार है :
सर्वदेवसूरि
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