________________
उपकेश गच्छ
____ १४५
सिद्धसूरि
[समरसिंह के गुरु)]
कक्कसूरि [वि०सं० १३९३ / ई० सन्
१३३६ में नाभिनन्दन
जिनोद्धारप्रबन्ध के कर्ता] उपदेशगच्छ की पट्टावलियाँ - जहाँ अन्य गच्छों की मात्र दो या तीन पट्टावलियाँ ही मिलती हैं, वहाँ उपकेशगच्छ की कई पट्टावलियों का उल्लेख मिलता है, किन्तु दुर्भाग्यवश अद्यावधि मात्र तीन पट्टावलियाँ ही प्रकाशित होने से अध्ययनार्थ उपलब्ध हो पाती हैं, शेष पट्टावलियाँ या तो नष्ट हो गयीं अथवा किन्हीं प्राचीन हस्तलिखित भण्डारों में पड़ी होंगी।
प्रकाशित पट्टावलियों का विवरण इस प्रकार है -
१. उपकेशगच्छप्रबन्ध - रचनाकार - कक्कसूरि, रचनाकाल वि० सं० १३९३
२. उपकेशगच्छपावली - रचनाकार - अज्ञात, रचनाकाल - वि०सं० की १५वीं शती का अन्त
३. उपकेशगच्छपट्टावली - रचनाकार - अज्ञात, रचनाकाल - वि० सम्वत् की २०वीं शती ... कक्कसूरि के सं० १३९३/ई० १३३६ में लिखे गये उपकेशगच्छप्रबन्ध एवं नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के आधार पर श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने उपकेशगच्छ की पट्टावली का पुनर्गठन किया है। इस पट्टावली में कक्कसूरि और उनके गुरु सिद्धसूरि के सम्बन्ध में दिये गये समसामयिक विवरणों की ऐतिहासिकता निर्विवाद है। इसी प्रकार इस पट्टावली के कुछ अन्य विवरणों जैसे देवगुप्तसूरि द्वारा नवपदप्रकरणवृत्ति, उनकी पश्चात्कालीन परम्परा में हुए यशोदेवउपाध्याय द्वारा नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति के लेखन की बात उक्त रचनाओं की प्रशस्तियों से समर्थित होती है । चौलुक्यनरेश कुमारपाल के समय कक्कसूरि द्वारा पाटण में क्रियाहीन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org