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काशहद गच्छ
संवत १३०० ज्येष्ठ वदि १ सुक्रै: [शुक्रैः] ॥ श्रीकाशहदगच्छे, श्रीदेवचंद्रा आचारजसंताने सालिगसुत आसिग .... .... .... .... देवेन .... .... .... .... सहितेन .... .... .... .... ।
___ यद्यपि उक्त खण्डित लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम नष्ट हो गया है, परन्तु वे आचार्य देवचन्द्र के संतानीय [शिष्य] थे, ऐसा स्पष्ट होता है। ___ काशहदगच्छ में किन्ही सिंहसूरि के शिष्य नरचन्द्र उपाध्याय नामक एक विद्वान् मुनि हो चुके हैं जिनके द्वारा रचित प्रश्नशतक ज्ञानदीपिका नामक वृत्ति सहित, जन्मसमुद्रसटीक और ज्योतिषचतुर्विंशतिका आदि कृतियां मिलती हैं। प्रश्नशतक का रचनाकाल वि०सं० १३२४/१२६८ ई. माना जाता है । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु का सादर उल्लेख किया
इति श्रीकाशहृदगच्छीय श्रीसिंहसूरिशिष्यश्रीनरचंद्रोपाध्यायकृतायां ज्ञानदीपिकासंज्ञायां प्रश्नशतकवृत्तौ वृत्तिवेडालधुभागिन्यां वृष्टिवार्तादिप्रकीर्णकफललक्षणो नाम सप्तमः प्रकाशः ॥ ६ ॥ ज्ञानदीपिकानामवृत्तिः समाप्ता ॥
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, वि०सं० १२४५/११८९ ई. के कई प्रतिमालेखों में काशहृदयगच्छीय आचार्य सिंहसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है और प्रश्नशतक आदि कई ग्रन्थों के रचनाकार नरचन्द्र उपाध्याय भी अपने गुरु का नाम सिंहसूरि ही बतलाते हैं । ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या आबू स्थित विमलवसही में वि० सं० १२४५/११८९ ई० में प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक सिंहसूरि तथा पूर्वोक्त ग्रन्थकार नरचन्द्र उपाध्याय के गुरु सिंहसूरि एक ही व्यक्ति हैं ? नरचन्द्र उपाध्याय का समय वि० सं० १३२४/१२६८ ई. सुनिश्चित है, अत: उनके गुरु का समय उनसे लगभग २५ वर्ष पूर्व वि०सं० १३०० के आस-पास माना जा सकता है । इस प्रकार दोनों सिंहसूरि के
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