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कोरंट गच्छ
३४९ ने स्वयं को नूतन जिनालयों के निर्माण तथा नवीन जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा तक ही सीमित रखा । शनैः शनैः इस गच्छ के आचार्यों का समाज पर प्रभाव कम होने लगा और ऐसी स्थिति में इस गच्छ के अनुयायी मुनिजनों का अन्य प्रभावशाली गच्छों में सम्मिलित हो जाना अस्वाभाविक नहीं है। संदर्भ-सूची :१. C. D. Dalal, Ed. Descriptive Catalogue of Manuscripts in
the Jaina Bhandaras at Pattan, Pp. 327-28. २. Ibid. P. 364.. ३. श्री प्रशस्ति संग्रह, संपादक : अमृतलाल मगनलाल शाह (अहमदाबाद वि० सं०
१९९३) भाग २, पृ० ११५, प्रशस्ति क्रमांक ४३४.
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