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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं है। इस गच्छ से सम्बन्धित अगला अभिलेख वि० सं० १२१४ /ई. सन् ११५७ का है जो ऋषभदेव की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में भी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता । वर्तमान में यह धातु प्रतिमा आबू के निकट सीवेरा नामक ग्राम के एक जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित है।१८ डो० सोहनलाल पटनी ने इस लेख को वि० सं० १२२४ का बतलाया है। दोनों में कौन सी वाचना सही है, इसका निर्णय तो लेख को प्रत्यक्ष देखने से ही हो सकता है ।१८१
जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, इस गच्छ में भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि, इन चार पट्टधर आचार्यों के नामों की ही पुनरावृत्ति होती है। इन परम्परागत नामों का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम लेख वि० सं० १२३७ / ई. सन् ११८० का है जो एक सिरविहीन पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। यह प्रतिमा आज खेड़ा जिले में स्थित रणछोड़जी के मंदिर में रखी हुई है।
इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में आचार्य विजयसिंहसूरि का उल्लेख है। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित अन्य कोई प्रतिमा नहीं मिली है।
विजयसिंहसूरि के पट्टधर वीरसूरि हुए। इनके द्वारा भी प्रतिष्ठापित कोई प्रतिमा आज उपलब्ध नहीं है।
वीरसूरि के पट्टधर जिनदेवसूरि हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित दो प्रतिमाओं के लेख उपलब्ध हुए हैं । उनका विवरण इस प्रकार है
(१) सं० १२६८ वैशाख सुदि ३ श्री भावदेवाचार्यगच्छ श्रे० पुत्र वत्र सुतेन आमदत्तेन पु० त्रागभंत्रुढत्याण (?) । ३ । वीरबिबं कारितं । प्रति० श्री जिनदेवसूरिभिः२०
(२) सं० १२८२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रे श्रीभावदेवाचार्य गच्छे ताड़कात्रा पत्र्या वाढ़ जामहेड़ आरात देवड़ शालिभि: वीरा श्रेयसे पार्श्वबिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जि(न)देवसूरिभिः । २१
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