________________
कृष्णर्षि गच्छ
३५३
तत्त्वाचार्य
कृष्णर्षि
दाक्षिण्यचिह्न
यक्षमहत्तर उद्योतनसूरि [शक सं० ७००/ • ई०स० ७७८ में कुवलयमालाकहा
जयसिंहसूरि के रचनाकार]
[वि.स. ९१५/
ई०स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण
के रचनाकार] थारापद्रगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ के लेख में इस गच्छ के आचार्य पूर्णभद्रसूरि ने भी वटेश्वर क्षमाश्रमण का अपने पूर्वज के रूप में उल्लेख किया है।
कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करनेवाला द्वितीय साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १३९० / ई० स० १३३४ में इस गच्छ के भट्टारक प्रभानंदसूरि द्वारा आचार्य हरिभद्र विरचित जम्बूद्वीपसंग्रहणीप्रकरण पर लिखी गई टीका की प्रशस्ति । यद्यपि इसमें टीकाकार प्रभानन्दसूरि के अतिरिक्त किसी अन्य आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु इनकी प्रेरणा से वि० सं० १३९१ / ई० स० १३३५ में लिपिबद्ध करायी गयी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति से इनके गुरु-परम्परा के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है । इसके अनुसार कृष्णर्षिगच्छ में सुविहित शिरोमणि पद्मचन्द्र उपाध्याय हुए जिनकी शाखा में भट्टारक पृथ्वीचन्द्रसूरि हुए । उनके पट्टधर प्रभानन्दसूरि के उपदेश से एक श्रावकपरिवार द्वारा उक्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org