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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
बीच लगभग ५५ वर्षो का अन्तराल है । अत: इस आधार पर यह माना जा सकता है कि दोनों अलग-अलग व्यक्ति हैं, एक नहीं ।
काशहृदगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १३४९/१२८३ ई० का है । यह लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर में संरक्षित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । श्री अगरचन्द नाहटा ' ने इस लेख की वाचना निम्नानुसार दी है
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संव [त्] १३४९ फागुण [ फाल्गुन] सुदि ८ श्रीकाशहृदगच्छे श्री० आंबड़पुत्रकर्मणेन मातृपितृश्रेयार्थं पार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० यण: ( ? ) | इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक मुनि का स्पष्ट उल्लेख नहीं है । इसी गच्छ से सम्बद्ध अगला लेख वि० सं० १३७३ / १३१७ ई० का है । यह लेख वडनगर स्थित चौमुखजी देरासर में प्रतिष्ठापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण हैं । आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है
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सं० १३७३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ श्रीकाशहदीयगच्छे, बहुसीहनय श्री आदिनाथबिंब का० प्रति० श्री उमेतनसूरिभिः ॥
इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उमेतनसूरि [ उद्योतनसूरि ] का उल्लेख है ।
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काशहदगच्छ से सम्बद्ध अगला अभिलेख वि० सं० १३९३/१३३७ ई० में प्रतिष्ठापित शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि जयन्तविजय' के अनुसार लेख का मूलपाठ इस प्रकार है
सं० १३९३ काशहदगच्छे ० नरसीह भा० वरजी पु० धरणिगेन पित्रोः श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिं० का० प्र० श्री सिंहसूरिभि: ॥
उक्त लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में सिंहसूरि का नाम दिया गया है ।
इसी गच्छ से सम्बद्ध दो प्रतिमालेख वि. सम्वत् की १५वीं शती के हैं । उनमें से एक वि० सं० १४६१ / १४०५ ई० का है, जो मातर स्थित
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