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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास काशहदगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्व प्रथम साक्ष्य है वि०सं० ११९२/ ११३६ ई. का एक लेख, जो पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री साराभाई नवाब ने इसकी वाचना निम्नानुसार दी है -
सं० ११९२ .... ............... काशहृदगच्छे श्रीसिंहलभार्या........ भार्यया सोहव्था कारिता।
काशहृदगच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय साक्ष्य है वि० सं० १२२२/ ११६६ ई. का लेख, जो पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। यह प्रतिमा आबू स्थित विमलवसही में प्रतिष्ठापित है। मुनि जयन्तविजयजी ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है____ संवत् १२२२ फाल्गुन सुदी १३ रवौ श्रीकाशहृदगच्छे श्र [श्री] मदु [द्] द्योतनाचार्यसंताने अर्बुदवास्तव्य श्रे० वरणाग तद्भार्या दली तत् पुत्रो [तत्पुत्रौ] श्रे० छाहर बाहरौ प्रथम [स्य] भार्या जासू तत्पुत्रा देवचंद्र वीरचंद्र । पास [व] चंद्र प्रभृतिसमस्तकुटुंबसमुदायेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं आत्मश्रेयोर्थं कारितमिति ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ चंद्रा6 यावन्नंदति चिरं जयतु।
उक्त लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं मिलता बल्कि उद्योतनसूरिसंतानीय..... ऐसा उल्लेख है। काशहृदगच्छ के उपलब्ध साक्ष्यों में सबसे प्राचीन होने से यह लेख महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
काशहदगच्छ से सम्बद्ध वि०सं० १२४५/११८९ ई. वैशाख वदि ५ गुरुवार के १० लेख मिले है। ये सभी आबू स्थित विमलवसही में प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं । इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में काशहदगच्छीय आचार्य सिंहसूरि का उल्लेख है। ये सिंहसूरि किनके शिष्य थे, इस बारे में उक्त लेखों से कोई जानकारी नहीं प्राप्त होती। ___काशहृदगच्छ से सम्बन्धित वि० सं० १३००/१२४४ ई. का भी एक लेख उक्त जिनालय से ही प्राप्त हुआ है । लेख का मूल पाठ इस प्रकार है
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