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काशहृदगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय से पूर्वमध्ययुग में नगरों और ग्रामों के नाम के आधार पर भी विभिन्न गच्छों का नामकरण हुआ; यथा ब्रह्माण से [वर्तमान वरमाण] से ब्रह्माणगच्छ, वायट से वायटीयगच्छ, काशहद से काशहृदगच्छ, जाल्योधर [जालिहर] से जाल्योधर या जालिहरगच्छ, कोरंट [कोरटा] से कोरटंगच्छ आदि । अर्बुदगिरि [वर्तमान आबू पर्वत] की तलहटी में काशहद' [वर्तमान कासीन्द्रा या कायंद्रा] नामक एक प्राचीन ग्राम स्थित है जो जैन तीर्थ के रूप में पूर्व मध्ययुग से ही प्रसिद्ध रहा है। इसी स्थान से काशहृदगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जहां अन्य गच्छों से सम्बद्ध बड़ी संख्या में ग्रन्थप्रशस्तियां, महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि की दाता प्रशस्तियां, दो-एक पट्टावलियां तथा प्रतिमालेख आदि उपलब्ध होते हैं वही इस गच्छ की न तो कोई पट्टावली मिलती है और न ही पर्याप्त संख्या में ग्रन्थ प्रशस्तियां या अभिलेखीय साक्ष्य ही मिलते हैं। मात्र कुछ ग्रन्थप्रशस्तियां और प्रतिमालेख ही ऐसे मिलते हैं जो इस गच्छ से सम्बद्ध हैं। उक्त सीमित साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत है --
जालिहरगच्छीय आचार्य देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित [रचनाकाल वि०सं० १२५४/११९८ ई.] की प्रशस्ति में काशहदगच्छ और जालिहरगच्छ का विद्याधरगच्छ की शाखा के रूप में उल्लेख है। परन्तु ये दोनों गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आये, इनके आदिम आचार्य कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई भी जानकारी नहीं मिलती।
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