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काशहद गच्छ
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सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय में रखी पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है ।" लेख का मूलपाठ इस प्रकार है
सं० १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रे उपकेराज्ञा ० ० सांगणभार्यासुहवदे-पुत्रघणसीहेन सु० मेघासहितेन पितृपितृव्यराणानिमित्तं श्री पार्श्वनाथबिंबं का० प्र० काशहृदगच्छे श्रीदेवचन्द्रसूरिभिः ॥
वि० सं० की १५वीं शती का द्वितीय लेख वि० सं० १४७२ / १४१६ ई० का है जो धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । श्री अगरचन्द नाहटा ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है
सं० १४७२ वर्ष फा॰ सु० ९ श्रीकासद [काशहद] गच्छे उएस ज्ञा० मोटिलागोत्रे . जयता पु० रत्ना भा० रत्नसिरि पु. धणसीहेन पित्रोः श्रेयसे श्री धर्मनाथ [[ ] कारित प्रति० श्री उजोअण [ उद्योतन ] सूरिभिः ॥
उक्त प्रतिमा आज चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर में है काशहदगच्छ का उल्लेख करने वाला यह अंतिम अभिलेखीय साक्ष्य है I
काशहृदगच्छीय किन्हीं देवचन्द्रसूरि के शिष्य उपाध्याय देवमूर्ति द्वारा रचित विक्रमचरित [रचनाकाल वि०सं० १४७१ के आसपास] नामक एक कृति मिलती है । १३ इस कृति की दो हस्तलिखित प्रतियां मेदपाट । [मेवाड़] के शासक कुम्भकर्ण [वि०सं० १४८९ - १५२४ / १४३३ -१४६८ ई०] के राज्य में लिखी गयीं। प्रथम प्रति वि० सं० १४९२ / १४३६ ई० में वेसग्राम नामक स्थान पर ग्रन्थकार के गुरु देवचन्द्रसूरि के शिष्य उद्योतनसूरि
पट्टधर सिंहरि ने स्व पठनार्थ वाचनाचार्य शीलसुन्दर से लिखवायी । द्वितीय प्रति उक्त सिंहसूरि ने ही उक्त शासक के शासनकाल में ही वि० सं० १४९९/१४४० ई० में महीतिलक से लिखवायी । अर्थात्
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