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उपकेश गच्छ
२१३ कि देवगुप्तसूरि के समय से ही उपकेशगच्छ की इस प्राचीन शाखा के मुनिजन ककुदाचार्यसंतानीय कहे जाने लगे। इस प्रकार उपरोक्त तालिका के १०० वर्षों की आचार्य परम्परा का अन्तराल पूर्ण हो जाता है और उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय मुनिजनों के गुरु-परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है, द्रष्टव्य-तालिका-३ । तालिका-३
कक्कसूरि
जिनचन्द्रगणि कुलचन्द्रगणि
अपरनाम [वि०सं० १०७३/ई० सन् देवगुप्तसूरि १०१७ में नवपदप्रकरण
के रचनाकार]
कक्कसूरि [पंचप्रमाण के कर्ता]
। [वि०सं० १०७८/ई० सन् १०२२
। प्रतिमालेख] सिद्धसूरि
देवगुप्तसूरि [द्वितीय]
सिद्धसूरि
यशोदेव उपाध्याय पूर्वनाम धनदेव [वि०सं० ११९२/ई० सन् ११३६ में [वि०सं० ११६५/ई० सन् ११०९ में क्षेत्रसमासवृत्ति; [वि०सं० १२०३ नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति एवं प्रतिमालेख]
वि०सं० ११७८/ई० सन् ११२२ में
चन्द्रप्रभचरित के कर्ता] ककुदाचार्य/कक्कसूरि (चौलुक्यनरेश कुमारपाल
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