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उपकेश गच्छ
. २८५ [प्रतिमालेख अनुपलब्ध]
देवगुप्तसूरि
सिद्धसूरि
[वि०सं० १६५९-१६८९] वि०सं० १६८१ में दिवंगत [वि०सं० १६९१---?]
कक्कसूरि
देवगुप्तसूरि
[प्रतिमालेख अनुपलब्ध]
सिद्धसूरि
[वि०सं० १७८३ में दिवंगत]
कक्कसूरि
[प्रतिमालेख अनुपलब्ध]
देवगुप्तसूरि
[वि०सं० १८४६ में दिवंगत]
सिद्धसूरि
[वि०सं० १८९० में दिवंगत]
कक्कसूरि
[प्रतिमालेख अनुपलब्ध]
देवगुप्तसूरि [वि०सं० १९०५-१९१२]
प्रतिमालेख उपकेशगच्छ से सम्बद्ध १८वीं - १९वीं शती के कुछ प्रतिमाओं पर इस गच्छ के यतिजनों के नाम भी मिलते हैं,२६ परन्तु इनके आधार पर इन यतिजनों की गुरु-परम्परा की कोई तालिका नहीं बन पाती हैं।
उपकेशगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों की उक्त तालिका से स्पष्ट है कि विक्रम की १६वीं शती तक इस गच्छ के मुनिजनों का विशेष प्रभाव रहा, किन्तु १७वीं शताब्दी से इस गच्छ के प्रभाव में कमी आने लगी, फिर भी २०वीं शती तक इस गच्छ का निर्विवाद रूप से अस्तित्व बना रहा ।
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