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उपकेश गच्छ
जिनचन्द्रगणि / कुलचंद्रगणि
अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि०सं० १०७३ / ई० सन्
१०१६ में नवपदप्रकरण। सटीक के रचनाकार] कक्कसूरि [जिनचैत्यवन्दनविधि एवं |
पञ्चप्रमाण के कर्ता]
पञ्चप्रमाण क कता । [वि०सं० १०७८ प्रतिमालेख] सिद्धसूरि
देवगुप्तसूरि [द्वितीय]
सिद्धसूरि
यशोदेव उपा० पूर्वनाम धनदेव [वि०स० ११९२।
[वि०सं० ११६५/ ई० सन् ११३५ में
ई० सन् ११०८] क्षेत्रसमासवृत्ति
में नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति [वि०सं० १२०३
वि०सं० ११७८/ प्रतिमा लेख]
ई. सन् ११२१ में
चंद्रप्रभचरित के कर्ता कक्कसूरि [चौलुक्यनरेश कुमारपाल-वि०सं० ११९९-१२३०]
के समकालीन
[वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख] विक्रम की चौदहवीं शती से उपकेशगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों की संख्या बढ़ने लगती है। यह उल्लेखनीय है कि विक्रम की १३वीं शती तक
के समक
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