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उपकेश गच्छ देवगुप्तसूरि की कृति पर बृहदवृत्ति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है -
कक्कसूरि जिनचन्द्रगणि / देवगुप्तसूरि [नवपदप्रकरण के
रचनाकार] कक्कसूरि [पञ्चप्रमाण के कर्ता]
सिद्धसूरि
देवगुप्तसूरि
सिद्धसूरि
धनदेव/यशोदेव उपाध्याय [वि०सं० ११६५/ई० सन् ११०८ में
नवपदप्रकरणबृहवृत्ति के रचनाकार] यशोदेवउपाध्याय ने वि० सं० ११७८ / ई० सन् ११२१ में प्राकृत भाषा में (६४०० गाथाओं) चन्द्रप्रभचरित की भी रचना की।
३. क्षेत्रसमासवृत्ति - ३००० श्लोक परिमाण यह कृति उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि द्वारा वि०सं० ११९२ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में वृत्तिकार की गुरु-परम्परा का जो उल्लेख मिलता है, वह इस प्रकार है
कक्कसूरि
सिद्धसूरि
देवगुप्तसूरि
सिद्धसूरि
[क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार]
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