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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अमररत्नसूरिशिष्य इतना ही बतलाया है। यह रचना प्राचीनफागुसंग्रह में प्रकाशित है।
अमरसिंहसूरि
अमररत्नसूरिशिष्य [ रचनाकार ] ३- सुन्दरराजारास-आगमगच्छीय अमररत्नसूरि की परम्परा के कल्याणराजसूरि के शिष्य क्षमाकलश ने वि० सं० १५५१ में इस कृति की रचना की । क्षमाकलश की दूसरी कृति ललिताङ्गकुमाररास वि० सं० १५५३ में रची गयी है। दोनों ही कृतियाँ मरु-गूर्जर भाषा में हैं । इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है, जो इस प्रकार है
अमररत्नसूरिशिष्य
अमररत्नसूरि
सोमरत्नसूरि
कल्याणराजसूरि
क्षमाकलश [सुन्दरराजारास एवं
ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता] ४-लघुक्षेत्रसमासचौपाई-यह कृति आगमगच्छीय मतिसागरसूरि द्वारा वि०सं० १५९४ में पाटन नगरी में रची गयी है। इसकी भाषा मरुगुर्जर है। चना के प्रारम्भ और अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है -
सोमरत्नसूरि
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