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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णिमागच्छ आदि कई गच्छ चन्द्रकुल से ही अस्तित्व में आये । इस गच्छ से सम्बद्ध विभिन्न प्रतिमालेख मिलते हैं जो वि०सं०१०७२ से वि०सं० १५५२ तक के हैं। मुनिपतिचरित्र (रचनाकाल वि०सं० १००५) एवं जिनशतककाव्य (रचनाकाल वि०सं० १०२५) के रचयिता जम्बूकवि अपरनाम जम्बूनाग इसी गच्छ के थे। सनत्कुमारचरित के रचनाकार चन्द्रसूरि भी इसी गच्छ के थे। इसी गच्छ के शिवप्रभसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि ने वि०सं० १२६१ में प्रत्येकबुद्धचरित की रचना की । वसन्तविलास के रचनाकार बालचन्द्रसूरि, प्रसिद्ध ग्रन्थ संशोधक प्रद्युम्नसूरि, शीलवतीकथा के रचनाकार उदयप्रभसूरि इसी गच्छ के थे ।
चैत्रगच्छ- मध्ययुगीन श्वेताम्बर गच्छों में चैत्रगच्छ भी एक है । चैत्रपुर नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । इस गच्छ के कई नाम मिलते हैं यथा - चैत्रवालगच्छ, चित्रवालगच्छ, चित्रपल्लीयगच्छ, चित्रगच्छ आदि । धनेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं । इनके पट्टधर भुवनचन्द्रसूरि हुए जिनके प्रशिष्य और उपाध्याय देवभद्र के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि से वि०सं० १२८५/ईस्वी सन् १२२९ में तपागच्छ का प्रादुर्भाव हुआ । देवभद्रसूरि के अन्य शिष्यों से चैत्रगच्छ की अविच्छिन्न परम्परा जारी रही । सम्यकत्वकौमुदी (रचनाकाल वि०सं० १५०४/ईस्वी सन् १४४८) और भक्तामरस्तवटीका के रचनाकार गुणाकरसूरि इसी गच्छ के थे।
चैत्रगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जो वि०सं० १२६५ से वि०सं० १५९१ तक के हैं । इस गच्छ से कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ, जैसे भर्तृपुरीयशाखा, धारणपद्रीयशाखा, चतुर्दशीयशाखा, चन्द्रसामीयशाखा, सलषणपुराशाखा, कम्बोइयाशाखा, अष्टापदशाखा, शार्दूलशाखा आदि।
जाल्योधरगच्छ- विद्याधरगच्छ की द्वितीय शाखा के रूप में इस गच्छ का उदय हुआ । यह शाखा कब और किस कारण अस्तित्व में आयी, इसके पुरातन आचार्य कौन थे, साक्ष्यों के अभाव में ये प्रश्न अनुत्तरित हैं। इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो प्रशस्तियाँ - नन्दिपददुर्गवृत्ति की दाताप्रशस्ति
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