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श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय
__४७ हैं । इन लेखों में विमलसूरि, बुद्धिसागरसूरि, उदयप्रभसूरि, मुनिचन्द्रसूरि आदि आचार्यों के नाम पुनः पुनः आते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि इस गच्छ के मुनिजन चैत्यवासी रहे होंगे । इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का प्रायः अभाव है, अतः इसके बारे में विशेष बातें ज्ञात नहीं होती हैं।
वडगच्छ - सुविहितमार्गप्रतिपालक और चैत्यवास विरोधी गच्छों में वडगच्छ का प्रमुख स्थान है । परम्परानुसार चन्द्रकुल के आचार्य उद्योतनसूरि ने वि०सं० ९९४ में आबू के निकट स्थित टेलीग्राम में वटवृक्ष के नीचे सर्वदेवसूरि सहित ८ शिष्यों को आचार्यपद प्रदान किया। वटवृक्ष के नीचे उन्हें आचार्यपद प्राप्त होने के कारण उनकी शिष्यसन्तति वडगच्छीय कहलायी । वटवृक्ष के समान इस गच्छ की भी अनेक शाखायें-प्रशाखायें अस्तित्व में आयीं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी पड़ गया। गुर्जरभूमि में विधिमार्गप्रवर्तक वर्धमानसूरि, उनके शिष्य जिनेश्वरसूरि
और बुद्धिसागरसूरि, नवाङ्गीवृत्तिकार अभयदेवसूरि, आख्यानकमणिकोश के रचयिता देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि, उनके शिष्य आम्रदेवसूरि, प्रसिद्ध ग्रन्थकार मुनिचन्द्रसूरि, उनके पट्टधर प्रसिद्ध वादीदेवसूरि, रत्नप्रभसूरि, हरिभद्रसूरि आदि अनेक प्रभावक और विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। इस गच्छ की कई अवान्तर शाखायें अस्तित्व में आयी, जैसे वि०सं० ११४९ या ११५९ में यशोभद्र-नेमिचन्द्र के शिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के ज्येष्ठ गुरुभ्राता चन्द्रप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ का उदय हुआ । इसी प्रकार वडगच्छीय शांतिसूरि द्वारा वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५ में पीपलवृक्ष के नीचे महेन्द्रसूरि, विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को आचार्यपद प्रदान करने के कारण उनकी शिष्यसन्तति पिप्पलगच्छीय कहलायी। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा वि०सं० की १७वीं शती के अन्त तक वडगच्छ का अस्तित्व ज्ञात होता है। ___ मलधारीगच्छ या हर्षपुरीयगच्छ - हर्षपुर (वर्तमान हरसौर) नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। जिनप्रभसूरि विरचित कल्पप्रदीप (रचनाकाल वि०सं० १३८९/ईस्वी सन् १३३३) के अनुसार एक बार चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज ने हर्षपुरीयगच्छ के आचार्य अभयदेवसूरि को मलमलिन वस्त्र एवं उनके मलयुक्तदेह को देखकर उन्हें 'मलधारी' नामक उपाधि से अलंकृत किया । उसी समय से हर्षपुरीयगच्छ मलधारीगच्छ के नाम से विख्यात हुआ ।
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