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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___ उपमितिभवप्रपंचाकथा - (रचनाकाल वि०सं० ९६२/ईस्वी सन् ९०६), सटीकन्यायावतार, उपदेशमालाटीका के रचनाकार सिद्धर्षि, चउपन्नमहापुरुषचरियं (रचनाकाल वि०सं० ९२५/ईस्वी सन् ८६९) के रचनाकार शीलाचार्य अपरनाम विमलमति अपरनाम शीलाङ्क, प्रसिद्ध ग्रन्थसंशोधक द्रोणाचार्य, सूराचार्य आदि भी इसी कुल से सम्बद्ध थे । यद्यपि इस कुल या गच्छ से सम्बद्ध अभिलेख वि०सं० १६वीं शती तक के हैं, परन्तु उनकी संख्या न्यून ही है।
इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में उपलब्ध साक्ष्यों से कोई जानकारी नहीं मिलती । यद्यपि पट्टावलियों में नागेन्द्र, चन्द्र और विद्याधर कुलों के साथ इस कुल की उत्पत्ति का भी विवरण मिलता है, किन्तु उत्तरकालीन एवं भ्रामक विवरणों से युक्त होने के कारण ये पट्टावलियाँ किसी भी गच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिये यथेष्ट प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती हैं । महावीर की परम्परा में निवृत्तिकुल का उल्लेख नहीं मिलता, अतः क्या यह पार्श्वपत्यों की परम्परा से लाटदेश में निष्पन्न हुआ ! यह अन्वेषणीय है ।
पल्लीवालगच्छ- पल्ली (वर्तमान पाली, राजस्थान) नामक स्थान से पल्लीवाल ज्ञाति और श्वेताम्बरों के पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य प्राप्त होते हैं । कालिकाचार्यकथा (रचनाकाल वि०सं० १३६५) के रचनाकार महेश्वरसूरि, पिंडविशुद्धिदीपिका (रचनाकाल वि०सं० १६२७), उत्तराध्ययनबालावबोधिनी टीका (रचनाकाल वि०सं० १६२९) और आचारांगदीपिका के रचयिता अजितदेवसूरि इसी गच्छ से सम्बद्ध थे । पल्लीवालगच्छ से सम्बद्ध जो प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं वे वि०सं० १३८३ से वि०सं० १६८१ तक के हैं । इस गच्छ की एक पट्टावली भी प्राप्त हुई है, जिसके अनुसार यह गच्छ चन्द्रकुल से उत्पन्न हुआ है।
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