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वर्तमान शताब्दी का इतिहास
वर्तमान शताब्दी के जैन समाज का इतिहास अनेक रोचक घटनाओं एवं संघर्षों का इतिहास है सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में किसी दृष्टि से वह आगे बढ़ा है तो किसी दृष्टि से वह पीछे भी गया है। उन्नति एवं अवनति उत्थान एवं पतन, सामंजस्य एवं मतभेद, शिक्षा एवं अशिक्षा, विरोध एवं भावात्मक एकता सभी की कहानी उसमें सम्मिलित है। वर्तमान शताब्दी का 60 वर्ष का काल (1888 से 1947 तक) पराधीनता का काल होने पर भी स्वतंत्रता के संघर्ष की कहानियों से ओत-प्रोत है। समाज का राष्ट्रीय एवं राजनैतिक पक्ष स्वतंत्रता के दीवानों की कहानियों को उजागर करने वाला है। राष्ट्रीय आन्दोलन उसने अपनी क्षमता से अधिक योगदान दिया और स्वतंत्रता सेनानियों में उसने अपने अस्तित्त्व को कभी नगण्य नहीं होने दिया। यद्यपि राजनैतिक दृष्टि से उसका कोई स्वतंत्र इतिहास नहीं लिखा गया किन्तु सैकड़ों राष्ट्रभक्तों के त्याग एवं बलिदान का देश के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास मे अवश्य उल्लेखनीय स्थान बना हुआ है। सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक दृष्टि से एक शताब्दी पूर्व की स्थिति का निम्न प्रकार विश्लेषण किया जा सकता है :
1. समाज में कोई भी केन्द्रीय संगठन नहीं था। प्रान्तीय संगठनों का भी कोई उल्लेख नहीं मिलता । 19वीं शताब्दी तक भट्टारक गण समाज के संचालक थे । धार्मिक एवं सामाजिक समस्याओं का वे समाधान किया करते थे, सामाजिक क्षेत्र में उनकी प्रमुख भूमिका रहती थी। लेकिन 20वीं शताब्दी में भट्टारकों का प्रभाव एकदम नगण्य हो गया। नागौर, अजमेर एवं श्रीमहावीरजी शताब्दी के प्रारम्भ में भट्टारक गादियां अवश्य थी लेकिन भट्टारकों का प्रभाव प्रायः विलुप्त होने लगा था और भट्टारको का स्थान स्थानीय पंचायतों ने ले लिया था।
2. देश में जयपुर के अतिरिक्त कहीं भी कोई स्वतंत्र जैन महाविद्यालय नहीं था इसलिये जैन धर्म की शिक्षा प्राप्त करना भी सम्भव नहीं था। सागर, मौरेना, वाराणसी के विद्यालय सभी 20वीं शताब्दी की देन हैं। जयपुर में सन् 1942 (संवत् 1885) में यहाँ के समाज द्वारा एक संस्कृत महापाठशाला की स्थापना की गई थी जिसका प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को संस्कृत एवं जैन धर्म की शिक्षा से शिक्षित करना रखा
गया था।
3. जैन पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का युग प्रारम्भ हो चुका था और सन् 1888 के पूर्व 10 पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा था इनमें सन् 1875 में जैन दिवाकर (गुजराती), सन् 1880 में जैन पत्रिका (हिन्दी) इलाहाबाद से, सन् 1884 में जैन बोधक (मराठी) सोलापुर से, जीयालाल प्रकाश (हिन्दी) फर्रुखनगर से, सन 1885 में जैन समाचार (हिन्दी) लखनऊ से प्रकाशित होने लगे थे जो जैन समाज की जागरूकता के प्रतीक माने जा सकते हैं।