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8/जैन समाज का वृहद् इतिहास
सांगली
ठाणे अहमद नगर नासिक जलगांव सोलापुर औरंगाबाद
67,314 65,907 45,509 33,565 28.792 24,589 24,141 23,328
यह जनसंख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार है जो वास्तविकता से बहुत दूर है। दक्षिण भारत की जैन समाज में अनेक आचार्यों ने जन्म लिया और जैन धर्म एव जैन साहित्य का निर्माण एवं प्रचार किया। आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समन्तभद्र, विद्यानन्द, जिनसेनाचार्य, रविषेणाचार्य, महाकवि स्वयम्भू, पुष्पदन्त दक्षिण भारत के ही सपूत थे। वर्तमान शताब्दी में आचार्य शान्ति सागर जी दक्षिण भारतीय थे। आचार्य देश भूषण जी, विद्यामन्द जी एवं आचार्य कुंधुसागर जी जैसे आचार्यों को देने का सौभाग्य भी दक्षिण भारत को ही मिला है।
गुजरात प्रदेश :
जैन समाज की दृष्टि से गुजरात को भी उसका महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहने का सौभाग्य प्राप्त है। जैनों का प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र गिरनार 22वें तीर्थकर नेमिनाथ का निर्वाण स्थल है। नेमिनाथ महाभारत युग के तीर्थकर थे तथा नवे नारायण श्री कृष्ण उनके चचेरे भाई थे। जैन पुराणों के आधार पर द्वारिका नगरी के अधिसंख्य नर-नारी उनका धर्मश्रमण करने जाते थे।
महावीर के पश्चात् आचार्य धरसेन गिरनार की गुफा में रहते थे और उन्होंने दक्षिण भारत से भूतबलि एवं पुष्पदन्त मुनि युगल को आगम साहित्य का अवशिष्ट शान लाभ देने के लिये बुलाया था। 12वीं शताब्दी में होने वाले सम्राट् कुमार पाल हेमचन्द्राचार्य के प्रमुख शिष्य थे और उनके कारण गुजरात में जैन धर्म का खूब प्रचार हो सका था। मुस्लिम काल में भट्टारक परम्परा का सबसे अधिक विकास सूरत, भडौच, नवसारी, पोरबन्दर, महसाना जैसे नगरों में हुआ था। वर्तमान में कान्जी स्वामी ने सोनगढ़ को अपना कार्य क्षेत्र बनाया और गुजरात में बहुत से मन्दिरों का नवनिर्माण करवाया । जनसंख्या की दृष्टि से गुजरात का देश में तीसरा स्थान है जहाँ पांच लाख की संख्या में जैन समाज रहता है।
1. राजस्थान के जैन सम्स- व्यक्तित्व एवं कृतित्स्य, लेखक : डॉ. कासलीवाल