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समाज का इतिहास/7
का मारवाड़ी समाज यहां व्यापार व्यवसाय के लिये गया और फिर वहाँ का निवासी बन गया। इसी तरह कलकत्ता में भी पिछले 100 वर्षों से मारवाड़ी समाज व्यवसाय के लिये वहाँ जाता रहा और फिर वहीं का होकर रह गया । बंगाल में एवं. विशेषतः कलकत्ता में हजारों की संख्या में मारवाड़ी जैन समाज रहता है। मारवाड़ी समाज में दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनो ही समाज आता है। कलकत्ता में वर्तमान में 9 दिगम्बर जैन मन्दिर एवं 6 जिन चैत्यालय है। इस महानगर में जैन समाज के कितने परिवार रहते हैं उनका कोई लेखा-जोखा नहीं है लेकिन श्री दिगम्बर जैन युवक समिति कलकत्ता द्वारा प्रकाशित पार्श्व डायरी 1989 में एक हजार ऐसे व्यक्तियों के पते दिये है जो व्यवसायी है, समाज में जाते-आते है तथा जिनके पास टेलीफोन की सुविधा है। सन् 1913 में प्रकाशित यात्रा दर्पण में यहाँ 855 जैन परिवार एवं 1386 जनसंख्या लिखी है।
दक्षिण भारत में जैन समाज : __ महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् देश के अन्य प्रदेशों की तरह दक्षिण भारत में जैन समाज की स्थिति मजबूत हो गई। जै समाजजनगरी एवं गायों तक में फैल गया । अन्तिम केवली आचार्य भद्रबाहु के समय में जब उत्तरी भारत में 12 वर्ष के भीषण अकाल के कारण जब उन्होंने अपने विशाल संघ एवं सम्राट् चन्द्रगुप्त के साथ दक्षिण की ओर विहार किया था तो उससे पता चलता है कि दक्षिण भारत में जैन समाज भी बड़ी संख्या में था। भद्रबाहु चतुर्दश पूर्वधर और अष्टांग महानिमित्त के पारगामी श्रुतकेवली थे। उन्होंने अपने 12 हजार साधुओं के विशाल संघ के साथ दक्षिण की ओर विहार किया और उन्हें दृढ़ विश्वास था कि वहाँ जैन साधुओं के आचार का पूर्ण निर्वाह हो जावेगा। तमिल प्रदेश के प्राचीनतम शिलालेख मदुरा और रामनाड जिले से प्राप्त हुये हैं जो अशोक चक्र स्तम्भों में उत्कीर्ण लिपि में है। उनका काल ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का अन्त और दूसरी शताब्दी का प्रारम्भ माना गया है। अशोक के उत्तराधिकारी सम्प्रति ने भी दक्षिण भारत में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का बहुत बड़ा कार्य किया था।
दक्षिणी कर्नाटक में भगवान बाहुबलि की विशाल खड़गासन प्रतिमा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दक्षिण भारत में जैन समाज कभी बहुसंख्यक समाज था। पांचवी शताब्दी में बेलगाँव जिला जैन समाज का प्रमुख केन्द्र था, यहाँ कदम्ब राजाओं ने अनेक जैन मन्दिर बनवाये थे। राष्ट्रकुट राजाओं के शासन में जैन धर्म वहाँ जनता का धर्म बन गया था और जैन समाज राज्य की बहुसंख्यक समाज थी।
वर्तमान में भी सम्पूर्ण जैन समाज की जनसंख्या का तीस प्रतिशत भाग महाराष्ट्र एवं कनाटक प्रदेश में रहता है। जैन समाज की कुल 32,06,038 में से महाराष्ट्र में सन् 1981 की जनगणना के अनुसार
जैन जनसंख्या 9,39,392 है जो अकेले बम्बई महानगर में जैनों की संख्या 3,41,980 है। इसी तरह प्रदेश के अन्य जिलों में रहने वाले जैनो की संख्या निम्न प्रकार है: कोल्हापुर
1,21,722
1. यात्रा दर्पण, पृष्ठ-9001 2. स्टडीज इन साउथ इण्डिया, पृष्ठ-32