Book Title: Haribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Anekantlatashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trsut
View full book text
________________ करनेवाली सभी छात्राओं का सन्मान किया गया साथ ही टाईटल दिया गया। मुझे “राही थक न जाना मञ्जिल दूर नहीं है" टाईटल मिला। यह टाईटल मेरे जीवन की उन्नति का एक संबल बना / यद्यपि उस समय मुझे इस स्तर तक पहुंचने की किंचित् भी संभावना नहीं थी क्योंकि जब मैं 9 वीं कक्षा में पढ रही थी तब पूज्य गुरुणीजी श्री लावण्यश्रीजी म.सा एवं पू. कोमललताश्रीजी म.सा. का सानिध्य प्राप्त हुआ। मेरी रुचि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए उत्कंठित हुई। अतः उस समय आध्यात्मिक शिक्षण यात्रा का दौर प्रारम्भ हुआ। धीरेधीरे संयम भावना से ओत-प्रोत बनकर मैंने संयम मार्ग पर जाने का दृढ संकल्प बना लिया और संयम जीवन स्वीकार करके अपने आपको धन्य मानने लगी / संयम ग्रहण करने के पश्चात् मुझे सभी की प्रेरणा मिली और शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में अपने कदम आगे बढाती रही। जिनशासन के शणगार, अवनि के अणगार, श्रमण भगवंत महावीर परमात्मा एवं उनके शासन की में ऋणी हूं कि उनके पावन शासन में मुझे जन्म मिला। मेरे इस अध्ययन क्षेत्र में विश्व पूज्य प्रातः स्मरणीय कलिकाल कल्पतरु अभिधान राजेन्द्र कोष निर्माता प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की दिव्यकृपा भी सदैव रही है। उनका नाम स्मरण ही मेरी इस सफलता का सोपान रहा है। - मुझे इस स्तर तक पहुंचाने में मेरी आस्था के केन्द्र, बहुमुखी प्रतिभाशाली, संयमदानेश्वरी, साहित्य मनीषी राष्ट्रसंत सुविशाल गच्छाधिपति वर्तमानाचार्य देवेश श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. का असीम आशीर्वाद रहा है। आपश्री समयसमय मुझे अध्ययन के लिए उत्साहित करते रहे / मैं आजीवन मेरे उपकारी श्रद्धेय गुरुदेवश्री की ऋणी रहूँगी। परम पूजनीया सरलमना विदुषी गुरुणीजी श्री लावण्य श्रीजी म.सा. एवं उनकी सुशिष्या सरल स्वभावी, मातृहृदया, प्रेरणादात्री गुरुमैया श्री कोमललता श्रीजी म.सा. के उपकारों की झडी आजीवन कैसे भूल सकती हूं? जिन्होंने संयम जीवन के प्रथम दिन से मुझे अध्ययन के लिए प्रेरित किया साथ ही अध्ययन के लिए पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध करवाई। आपके वात्सल्य एवं प्रेरणा के सण से कभी भी में उमण नहीं हो सकूगी। मेरे शोध प्रबन्ध में मेरी गुरु भगिनीयां सा. श्री शासनलता श्रीजी, सा. श्री यशोलता श्रीजी, सा. श्री कोविदलता श्रीजी, सा. श्री अतिशयलता श्रीजी, सा. श्रीकारुण्यलता श्रीजी,