________________
समय नहीं बिगाड़ा। वे कहते थे कि पतंग उड़ाने में कोई मज़ा नहीं है, फायदा नहीं है। वास्तव में मकर संक्रांति के समय सूर्य की ओर देखना हितकारी है इसलिए जब लोग पतंग उड़ाते थे तो वे खुद सिर्फ देखते थे। लोग जैसा देखा-देखी से करते हैं उन्होंने वैसा नहीं किया।
पटाखे फोड़ने का भी उन्होंने सार निकाल लिया। राजा खुद पटाखे फोड़ता है या नौकर से फुड़वाता है ? किसी राजा ने पटाखे नहीं फोडे, नौकर से ही फूडवाते हैं। वे खद पटाखे नहीं फोडते थे, कुर्सी पर बैठकर देखते थे। लाभ किसमें है, उनकी विचक्षण बुद्धि द्वारा वह उन्हें समझ में आ ही जाता था।
इस ज़माने में बचपन में भाभी के साथ होली खेली थी। भाभी ग्यारह साल की थीं और वे खुद दस साल के। तो वे राग-द्वेष भूलकर होली खेलते थे। उसके बाद देसी घी और गुड़ से बनी सेव खाते थे और आनंद करते थे, ऐसा निर्दोष ग्राम्य जीवन था तब।
[2] शैक्षणिक जीवन [2.1] पढ़ना था भगवान खोजने के बारे में
सात साल की उम्र में स्कूल में दाखिल हुए और चौथी कक्षा तक गुजराती में पढ़े और उसके बाद मैट्रिक तक अंग्रेज़ी में पढ़े। उन्होंने भादरण गाँव में ही पढ़ाई की। पढ़ाई करते हुए एक बार बड़े भाई उन्हें कुछ सिखाने लगे, उसे देखकर फादर ने ऐसा कहा कि 'यह तो सब पढ़कर ही आया है, तू इसे कहाँ पढ़ाने बैठा?' इतना सुनते ही उन पर इतना असर हो गया, अहंकार चढ़ गया और उससे उनका पढ़ना रुक गया।
जब स्कूल में जाते थे तो घंटी बजने के बाद ही स्कूल में दाखिल होते थे। मास्टर जी चिढते थे तो उस पर ध्यान नहीं देते थे। एक तरह का रौब था मन में, आड़ाई थी कि 'देर से ही जाऊँगा, क्या कर लेंगे?'
ऐसी शरारती प्रकृति थी कि मास्टर साहब भी घबराते थे। ऐसा
25