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भारतीय संवतों का इतिहास अविस्मरणीय है। उन्होंने दिल्ली, वाराणसी, मथुरा, उज्जन तथा जयपुर में यंत्र, जिन्हें जन्तर मन्तर कहा जाता है, बनवाये ।' भारतीय ज्योतिष पर विदेशी प्रभाव
पूर्वी व पाश्चात्य ज्योतिष विज्ञान के अनेक मौलिक तत्त्वों में समानता के कारण विद्वानों के लिए यह निश्चित करना कि कौन तत्त्व कहां विकसित हुआ तथा पूर्व व पश्चिम में से किसने दूसरे को अधिक तत्व दिये, विद्वानों के लिए कठिन समस्या बना रहा है। इन समानताओं को देखकर अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने इस प्रकार के विचार दिये कि भारत ज्योतिष विज्ञान के क्षेत्र में पूर्णतया विदेशों का ऋणी है तथा यहां अपना मौलिक कुछ भी विकसित नहीं हुआ। अतः भारतीय ज्योतिष तथा पंचांग के इतिहास का अध्ययन करते समय यह भी एक महत्वपूर्ण विचारणीय तथ्य हो जाता है कि इसमें विदेशी योगदान क्या है और स्वयं भारतीयों द्वारा किया गया प्रयास कितना है । इस सम्बन्ध में कतिपय विद्वानों द्वारा दिये गये विचार इस प्रकार हैं :
शंकर बाल कृष्ण दीक्षित ने भारतीय ज्योतिष के अनेक तत्वों का विस्तृत अध्ययन किया तथा चार विद्वानों कोलबुक, ह्विटने बर्जेस तथा थीबों के मतों की समीक्षा की है। इसमें कोलबुक के विचारों को मध्यम मार्ग का कह सकते हैं क्योंकि क्रान्तिवृत्त के १२ भाग करने की पद्धति को पहले ग्रीक से हिन्दुओं ने ग्रहण किया, फिर हिन्दुओं से अरबों ने ग्रहण किया, कोलब्र क का ऐसा मानना है । साथ ही गोल यन्त्र की कल्पना के क्षेत्र में हिन्दुओं के अग्रज होने की सम्भावना भी कोलबुक ने मानी है। "गोल यन्त्र की कल्पना या तो हिन्दुओं ने ग्रीक लोगों से सीखी या ग्रीक लोगों ने हिन्दुओं से ली।" इसके साथ ही कोलब्रक का विश्वास है कि भारतीयों ने ग्रीक लोगों से ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त कर अपने अपूर्ण ज्ञान को बढ़ाया। व्हिटने ने भारतीय ज्योतिष को पूर्णतया
१. अपूर्व कुमार चक्रवर्ती, 'इण्डियन कैलेण्डरिकल साइंस', कलकत्ता, १६७५,
पृ० ४४ । २. बाल कृष्ण दीक्षित, 'भारतीय ज्योतिष', अनु० शिवनाथ झारखण्डी, प्रयाग,
१६६३, पृ० ६४५-८४ । ३. बाल कृष्ण दीक्षित द्वारा उद्धृत, पृ० ६४६ । ४. बाल कृष्ण दीक्षित, 'भारतीय ज्योतिष', १९६३, पृ० ६४६ । ५. बाल कृष्ण दीक्षित द्वारा उद्धृत पृ० ६५१ ।