Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
१४
प्रो० सागरमल जैन
का उल्लेख तत्त्वार्थं वार्तिककार ने नहीं किया है। उसके स्थान पर पाल और अम्बष्ठपुत्र ऐसे दो अलग अलग नाम मान लिये हैं । यदि हम इसकी प्रामाणिकता की चर्चा में उतरें तो स्थानांग का विवरण हमें सर्वाधिक प्रामाणिक लगता है ।
स्थानांग में अन्तकृद्दशा के जो दस अध्याय बताये गये हैं उनमें नमि नामक अध्याय वर्तमान उत्तराध्ययन सूत्र में उपलब्ध है । यद्यपि यह कहना कठिन है कि स्थानांग में उल्लिखित 'नमि' नामक अध्ययन और उत्तराध्ययन में उल्लिखित 'नमि' नामक अध्ययन की विषयवस्तु एक थो या भिन्न-भिन्न थी । नमि का उल्लेख सूत्रकृतांग में भी उपलब्ध होता है । वहाँ पाराशर, रामपुत्त आदि प्राचीन ऋषियों के साथ उनके नाम का भी उल्लेख हुआ है । स्थानांग में उल्लिखित द्वितीय 'मातंग' नामक अध्ययन ऋषिभाषित के २६वें मातंग नामक अध्ययन के रूप में आज उपलब्ध है । यद्यपि विषयवस्तु की समरूपता के सम्बन्ध में यहाँ भी कुछ कह पाना कठिन है । सौमिल नामक तृतीय अध्ययन का नाम साम्य ऋषिभाषित के ४२ वें सोम नाम अध्याय के साथ देखा जा सकता है । रामपुत्त नामक चतुर्थ अध्ययन भी ऋषिभाषित के तेईसवें अध्ययन के रूप में उल्लिखित है । समवायांग के अनुसार द्विगृद्धिदशा के एक अध्ययन का नाम भी रामपुत्त था । यह भी संभव है कि अन्तकृद्दशा इसिमासियाइं और द्विगृद्धिदशा के रामपुत्त नामक अध्ययन की विषयवस्तु भिन्न हो चाहे व्यक्ति वही हो । सूत्रकृतांगकार ने रामपुत्त का उल्लेख अहंतु प्रवचन में एक सम्मानित ऋषि के रूप में किया है । रामपुत्त का उल्लेख पालित्रिपिटक साहित्य में हमें विस्तार से मिलता है । स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा का पाचवाँ अध्ययन सुदर्शन है । वर्तमान अन्तकृद्दशा में छठें वर्ग के दशवें अध्ययन का नाम सुदर्शन है । स्थानांग के अनुसार अन्तकृद्दशा का छठा अध्ययन जमाली है । अन्तकृदशा में सुदर्शन का विस्तृत उल्लेख अर्जुन मालाकार के अध्ययन में भी है । जमाली का उल्लेख हमें भगवती - सूत्र में भी उपलब्ध होता है । यद्यपि भगवतीसूत्र में जमालो को भगवान् महावीर के क्रियमानकृत के सिद्धान्त का विरोध करते हुए दर्शाया गया है। श्वेताम्बर परम्परा जमाली को भगवान् महावीर का जामातृ भी मानती है । परवर्ती साहित्य नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियों में भी जमाली का उल्लेख पाया जाता है और उन्हें एक निह्नव बताया गया है। स्थानांग की सूची के अनुसार अन्तकृद्दशा का सातवाँ अध्ययन भयाली ( भगाली ) है । 'भगाली मेतेज्ज' । ऋषिभाषित के १३ वें अध्ययन में उल्लिखित है । स्थानांग की सूची में अन्तकृद्दशा के आठवाँ अध्ययन का नाम किकम या किकस है । वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृद्दशा में छठें वर्ग के द्वितीय अध्याय का नाम किकम है, यद्यपि यहाँ तत्सम्बन्धो विवरण का अभाव है । स्थानांग में अन्तकृतद्दशा के ९ वें अध्ययन का नाम चिल्वकया चिल्लवाक है । कुछ प्रतियों में इसके स्थान पर 'पल्लेतीय' ऐसा नाम भी मिलता है - इसके सम्बन्ध में भी हमें कोई विशेष जानकारी नहीं है । दिगम्बर आचार्य अकलंकदेव भी इस सम्बन्ध में स्पष्ट नहीं है । स्थानांग में दसवें अध्ययन का नाम फालअम्बडपुत्त बताता है । जिसका संस्कृतरूप पालअम्बष्ठपुत्र हो सकता है । अम्बड संन्यासी का उल्लेख हमें भगवतीसूत्र में विस्तार से मिलता है अम्बड के नाम से एक अध्ययन ऋषिभाषित में भी है । यद्यपि विवाद का विषय यह हो सकता है कि जहां ऋषिभाषित और भगवती उसे अम्बड परिव्राजक कहते हैं वहां उसे अम्बडपुत्त कहा गया है ।
ऐतिहासिक दृष्टि से गवेषणा करने पर हमें ऐसा लगता है कि स्थानांग में अन्तकृद्दशा के १० अध्ययन बताये गये हैं वे यथार्थ व्यक्तियों से सम्बन्धित रहे होंगे क्योंकि उनमें से अधिकांश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org