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आनन्द प्रवचन : भाग १०
आसान बना दिया है। तुम्हारी बात मुझे मंजूर है।" यों कहकर शेरशाह ने स्वयं आगे बढ़कर अपनी बहू का मुंह ढक दिया। उसी समय युवराज आगे बढ़कर दुकानदार से गले मिला और शेरशाह के चरणों में गिरकर अपने अपराध के लिए माफी मांगी, भविष्य में ऐसा अपराध न करने का वचन दिया।
भाग्यशालियो ! यह है श्रेष्ठ राज्याधिप की न्यायनिष्ठा एवं व्यापक सूझ-बूझभरी दृष्टि, जिससे जनता का हृदय जीता जाता है। श्रेष्ठ राज्याधिप में प्रजावत्सलता
राज्याधिप वही श्रेष्ठ माना जा सकता है, जो प्रजा के प्रति वफादार हो, प्रजावत्सल हो, प्रजा के दिल को दुःखित न करता हो, प्रजा के दुःख को दूर करने के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार हो । 'ताओ-उपनिषद' में बताया गया है कि "जो देश के कड़े बोल सहता है, वही देश का स्वामी है, जो देश के लिए दुःख सहता है, वही सच्चा राजा है।" नीतिकारों ने राजा के लिए प्रजारंजन का गुण आवश्यक बताया है
प्रजां न रंजयेद् यस्तु राजा रक्षादिभिर्गुणैः।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ॥ "जो राजा प्रजा को उसकी सुरक्षा आदि गुणों द्वारा रंजित (प्रसन्न) नहीं करता, बकरी के गले में लगे स्तन की तरह उसका जन्म निरर्थक है।"
वास्तव में प्रजावत्सल राजा में प्रजा के प्रति हार्दिक सहानुभूति एवं दया होती है। नौवीं सदी के पूर्व की गुजरात की एक घटना है। गुजरात पर राजा भीमदेव शासन करते थे। लगभग एक साल से अनावृष्टि थी, किसानों के खेतों में कुछ भी अन्न न हुआ तो वे कर कहाँ से चुकाते ? कई गांवों के किसान कर न दे सके तो राजा के सिपाही उन गाँवों में घर-घर जाकर कर के बदले में जो कुछ मिला, उठा लाए।
राजकुमार मूलराज अभी छोटे ही थे, पर मन में प्रजावत्सलता कूट-कूटकर भरी थी। उनसे किसानों की यह दयनीयदशा तथा जबरन कर बसूल करने की प्रवृत्ति देखी न गई। वे उस समय घुड़सवारी सीख रहे थे, राजाजी ने उन्हें कहा था-"मन लगा कर सीखोगे तो पुरस्कार मिलेगा।" राजकुमार ने रात-दिन उत्साहपूर्वक जुटकर घुड़सवारी एक सप्ताह में सीख ली और उसकी परीक्षा देने के लिए पिता के सम्मुख उपस्थित हुआ। राजकुमार के उत्साह व नैपुण्य को देखकर राजा ने उसे पुरस्कार माँगने को कहा। राजकुमार ने कहा-."मैं यही पुरस्कार चाहता हूँ कि गरीब किसानों के यहाँ से जो सामान राजसेवक, कर न दे सकने के कारण, उठा लाए हैं, वह उन्हें वापस लौटा दिया जाए।" भीमदेव यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले-"मेरा
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