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आनन्द प्रवचन : भाग १०
परन्तु निःस्पृह कल्पक ने इन्कार करते हुए कहा-"राजन् ! मुझे मन्त्री पद स्वीकार नहीं, क्योंकि मन्त्री को लोभवश होकर अनेक पाप करने पड़ते हैं, फिर मैं भोजन और वस्त्र के सिवाय अन्य वस्तुओं का परिग्रह नहीं रखता।"
परन्तु नन्द राजा ने किसी युक्ति से उसे मन्त्री पद लेने के लिए मना लिया। कल्पक को मन्त्रीपद देकर नन्द राजा निश्चिन्त और कृतार्थ हो गया। अब वह बुद्धिमान कल्पक मन्त्री को साथ में रखता और उससे अनेक शंकाओं का समाधान करता।
एक बार कुछ धोबी एकत्रित होकर राजदरबार में कुछ उत्पात खड़ा करने आए, किन्तु कल्पक मन्त्री को राजा के पास बैठा देख सब के सब नौ दो ग्यारह हो गये।
कल्पक मन्त्री की योग्यता, क्षमता, कार्यकुशलता एवं बुद्धिमत्ता में बढ़ा-चढ़ा देखकर नन्दराजा ने उसे पहले के सब मन्त्रियों का शिरोमणि महामन्त्री बना दिया। कल्पक ने भी अपनी क्षमता से, सूझ-बूझ से राज्य को धन-धान्यादि से समृद्ध बना दिया, राजा को यशस्वी बना दिया। परन्तु कल्पक महामन्त्री पर राजा की कृपा एवं उसकी . उन्नति देखकर अन्य मन्त्री मन ही मन जलने लगे।
एक बार कल्पक महामन्त्री के पुत्र का विवाह समारोह था। कल्पक राजा को पुत्र-विवाह की खुशी में छत्र, मुकुट, चामर आदि देना चाहता था तथा राजा को अन्त.पुर सहित अपने घर आमन्त्रित करना चाहता था। अतः छत्र, मुकुट, चामर आदि बनवाने लगा। छिद्रान्वेषी ईर्ष्यालु मन्त्रियों को पता लगा तो उन्होंने राजा के कान भरे, उसे भड़का दिया कि कल्पक तो आपका राज्य छीनकर स्वयं राजा बनने के लिए छत्र, मुकुट, चामर आदि बनवा रहा है, हम झूठ कहते हों तो आप गुप्तचर भेजकर पता लगा लें। गुप्तचरों ने कल्पक के यहां छत्र, मुकुट आदि बनते देख राजा से सारी हकीकत कह दी ।
राजा कान का कच्चा था। उसने कल्पक महामन्त्री से इस विषय में पूछे बिना ही गलत निर्णय कर लिया। निर्दोष कल्पक को कुटुम्ब सहित एक अंधेरे कुए में उतार दिया। वहाँ खाने को सबके लिए एक सेर कोद्रव और एक लोटा पानी प्रतिदिन उनके लिए भेजता था। थोड़ा-सा अन्न देख कल्पक ने अपने कुटुम्बी जनों से कहा- "इस अन्न का एक-एक दाना, हम सबके हिस्से में आयेगा । इससे किसी की उदर पूर्ति नहीं होगी। एक-एक दाना खाने से तो हम जिन्दा नहीं रह सकेंगे । अतः हम में से जो कोई मन्त्रिपद का गम्भीर दायित्व पूर्ण कर सके, वह एक ही इस अन्नपानी का सेवन करे।"
सबने कल्पक से कहा-इस बात में तो केवल आप ही समर्थ हो, अन्य कोई नहीं है, अतः आप अकेले ही इस अन्न-पानी का उपयोग करो। सर्वानुमति से कल्पक उस अन्न-पानी का उपयोग करने लगा । अन्य सब कुटुम्बीजनों ने आमरण अनशन (संथारा) कर लिया, वे सब मरकर देवलोक में गये ।
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