Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 412
________________ ३८९ आनन्द प्रवचन : भाग १० उसी विषय का अपने दिमाग में बनाया हुआ खाना बाहर निकालता हूँ और उसी में ओतप्रोत हो जाता है।" इसी प्रकार आध्यात्मिक कार्य को सिद्ध करते समय साधक को अपनी समस्त शक्तियां उसी में लगा देनी चाहिए, अन्यथा अनवस्थित व्यक्ति उस कार्य को फूहड़ ढंग से करेगा, जिसकी प्रतिच्छाया आत्मा पर पड़े बिना न रहेगी। बन्धुओ ! ये सब अनवस्थित और अवस्थित आत्मा को पहचानने के माध्यम हैं । आप भी अपनी आत्मा को अनवस्थित बनकर शत्रु होने से बचाएँ। अवस्थित आत्मा ही साधक को स्वर्ग और मोक्ष तक ले जा सकती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430