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३९२ आनन्द प्रवचन : भाग १०
'जो व्यक्ति प्रतिमास लाख-लाख गायें दान देता है, किन्तु जीवन में शील या संयम की साधना नहीं करता, उसकी अपेक्षा वह व्यक्ति श्रेष्ठ है, जो किसी को धन या भौतिक साधन कुछ भी न देता हुआ भी शील.संयम का पालन करता है।'
. निष्कर्ष यह है कि शीलरहित व्यक्ति का दानादि से यश उपाजित करने की अपेक्षा शीलसहित होकर रहना अच्छा है, भले ही वह दानादि न कर पाता हो, किन्तु एकमात्र शील ही उसे प्रचुर यश प्राप्त करा सकता है ।
शीलरहित होने की स्थिति में व्यक्ति चाहे जितना सत्ता, धन, बल और वैभव का स्वामी हो, वह यश तो क्या अपयश ही अधिक कमाता है, प्रतिष्ठा का तो क्या, अप्रतिष्ठा का ही भाजन बनता है। वह सर्वत्र अनादर पाता है, कहीं भी उसका सत्कार नहीं होता। उत्तराध्ययन सूत्र में सड़ी हुई कुतिया का रूपक देकर इस बात को समझाया गया है
जहा सुण्णी पइकण्णी, निक्कसिज्जइ सव्वसो।
___ एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निक्कसिज्जइ ॥ 'जिसके कान से मवाद बहने के कारण दुर्गन्धित एवं सड़ा हुआ शरीर हो, उस कुतिया को जैसे सब जगह से दुत्कार कर निकाल दिया जाता है, वैसे ही जो व्यक्ति शीलभ्रष्ट हो, गुरुजनों के प्रतिकूल हो और बढ़-बढ़कर बोलता हो, वह अनादरपूर्वक निकाल दिया जाता है।'
मतलब यह है कि मनुष्य चाहे जितना भी बलिष्ठ, सत्ताधीश; धनाढ्य या उच्च पदाधिकारी क्यों न हो, यदि वह शीलरहित है, चरित्रभ्रष्ट है, दुराचारी है, तो उसका सभी अनादर करेंगे, कोई भी उसका यशोगान या प्रशंसानुवाद नहीं करेगा।
महाभारत का एक सुन्दर उदाहरण इस सम्बन्ध में याद आ रहा है
महाराजा विराट का साला और उनका सेनापति कीचक अपने समय का बहुत बड़ा वीर, साहसी और बलिष्ठ योद्धा था। महाराजा विराट् कीचक के बल पर शत्रुओं से निश्चिन्त होकर चैन की नींद सोते थे। लेकिन कीचक बहुत बड़ा मद्यप और व्यभिचारी था । व्यभिचार-दोष के कारण उसके ये सारे गुण भी अवगुण बन गये थे। स्वयं महाराजा विराट् भी उसकी इस दुष्टता के कारण उससे अप्रसन्न थे। कीचक उनके लिए आवश्यक भी था और त्याज्य भी।
___कीचक की व्यभिचारवृत्ति-शीलभ्रष्टता के कारण अन्तःपुर की दासियां तक त्रस्त रहती थीं और मन ही मन भगवान से उसके विनाश की मनौती करती थीं। बेचारी विवश एवं निर्बल अबलाओं की मनौती पूरी होने का संयोग उपस्थित हुआ । अज्ञातवास के समय अपने पाण्डवपतियों के साथ द्रौपदी भी 'सैरिन्ध्री' के नाम से महाराजा विराट की सेवा में आ गई थी। वेश-भूषा सादी होने पर भी उसका वास्तविक रूप-लावण्य छिपा नहीं रहा।
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