________________
शीलवान आत्मा ही यशस्वी ४०१ वात्सल्यमूर्ति शीलवती साहसी पेट्राक्रॉस को प्रसारिका का कार्य मिल गया । वह उसे लगन, उत्साह और स्फूर्ति से करने लगी। उसके चेहरे पर तेजस्विता, आकर्षक मुस्कान और वात्सल्य की मधुर रेखाएँ सदैव अठखेलियाँ करती रहती हैं । वाणी में भी अनुपम माधुर्य के साथ आता है, जो वरबस सबको खींच लेती है। बच्चों के कार्यक्रम तो वह इतनी वात्सल्यपूर्ण मुखमुद्रा एवं आत्मीयता के साथ प्रसारित करती है कि बच्चे उसी के कार्यक्रमों की मांग करते हैं, बच्चों को पेट्राक्रॉस में माता-सा वात्सल्य प्रतीत होता है। बस, इसी प्रकार शीलवती पेट्राक्रॉस व्यष्टि के सीमित घेरे से निकलकर समष्टि के प्रति अपनी वात्सल्य-गंगा बहाती हुई आनन्दविभोर बन गई।
यह है, शीलसम्पन्नता के अचूक प्रभाव का ज्वलन्त उदाहरण !
सचमुच, पेट्रक्रॉस की शीलवान आत्मा मानव-जाति के लिए आकर्षण एवं प्रेरणा का केन्द्र बन गई । हजारों-लाखों निराश-हताश लोगों के लिए पेट्राक्रॉस का शीलमय जीवन प्रेरणादायक हो गया, फिर उसके यशस्वी होने में क्या देर थी ?
शीलवान की दृष्टि आत्मा पर शीलवान व्यक्ति विकारी नेत्रों से किसी भी स्त्री की ओर नहीं देखता, न ही उसकी दृष्टि में कामुकता का कोई चिन्तन होता है, न ही स्त्री या पुरुष का कोई विचारमूलक भेद । विसुद्धि मग्गो की यह भावना उसके मानस में अंकित हो जाती है
सिरट्ठो सोलट्ठो, सोतलट्ठो सोलट्ठो शिरार्थ (सिर के समान उत्तम होना) शील का अर्थ है । शीतलार्थ (शीतलशान्त होना) शील का अर्थ है । जिस प्रकार सिर के कट जाने पर मनुष्य की मृत्यु हो जाती है, वैसे ही शील के टूट जाने पर मनुष्य का गुणरूप शरीर नष्ट हो जाता है । इसलिए शील शिरार्थ है।
सुखं कुतो भिन्नसीलस्स "जिसका शील भग्न (टूट) हो गया है, उसे संसार में सुख कहाँ ?" एक बौद्ध कथा है
श्रीलंका के अनुराधपुर में शीलवान स्थविर महातिष्य भिक्षाटन के लिए घूम रहे थे। उसी रास्ते से एक कुलवधू अपने पति से झगड़ा करके सजी-धजी अपने पीहर जा रही थी । स्थविर को देखकर वह कामासक्त तरुणी खूब जोरों से हँसी । स्थविर ने उसके दाँत की हड्डियों को देखा । उन पर विचार करते-करते ही वे अर्हत्व स्थिति को प्राप्त हो गए। पीछे से उसका पति उस महिला की खोज करता हुआ आया और स्थविर से पूछा-"भन्ते ! इधर से कोई स्त्री जाती हुई देखी आपने ?" सुशीलवान महातिष्य स्थविर ने कहा
नाभिजानामि इत्थी वा पुरिसो वा इतो गतो। अपि च अद्विसंघाटो गच्छतेस महापथे ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org