Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 419
________________ शीलवान आत्मा ही यशस्वी ३६५ अन्तर की वस्तु है, उसके पालन के लिए भी आत्मा की दृढ़ता अपेक्षित होती है, तथापि शीलवान व्यक्ति के बाह्य आचरणों, व्यवहारों तथा प्रवत्तियों से उसकी आन्तरिक शीलविषयक भावनाओं का पता चल जाता है। . जैन समाज में यह प्रथा प्रचलित है कि जब कोई गृहस्थ आजीवन पूर्ण ब्रह्म. चर्य का पालन करने को उद्यत होता है तो वह उस संकल्प को स्वयं अकेले में, मनही-मन नहीं ग्रहण करता; अपितु आम धर्मसभा में सबके समक्ष गुरुमुख से आजीवन शीलपालन की प्रतिज्ञा लेता है । उसके पश्चात वह अपनी ओर से शील प्रतिज्ञा ग्रहण करने की खुशी में, सबकी आन्तरिक शुभेच्छाएँ प्राप्त करने की दृष्टि से प्रभावना (लाहणी) वितरित करता है। . उसके शीलवत के आजीवन संकल्प से प्रभावित होकर दूसरे लोग भी आजीवन शीलवत स्वीकार करने के लिए प्रेरित होते हैं। जैन इतिहास में प्रसिद्ध श्रावक पेथडशाह के जमाने की बात है। उनके नगर के किसी श्रावक ने आजीवन शीलवत धारण करने वाले भाई-बहनों की धर्मभावना को प्रोत्साहित करने हेतु अपनी ओर से उनको प्रभावना (लाहणी) वितरित कराई। सभी शीलव्रतधारी भाई-बहनों को लाहणी दे चुकने के बाद पेथडशाह को धर्म का अग्रणी समझकर वह श्रावक लाहणी प्रदान करने लगा। इस पर पेथडशाह ने पूछा"भाई ! यह लाहणी किस बात की दी जा रही है ?" श्रावक ने नम्रतापूर्वक कहा-"श्रीमान् ! मैंने आज शीलवतबद्ध श्रावकश्राविकाओं को लाहणी दी है । आप भी हमारे धर्म के अग्रगण्य तथा मान्य धर्मिष्ठ श्रावक हैं । अतः आपके सम्मानार्थ आपकी सेवा में यह तुच्छ भेंट देना चाहता हूँ, आप इसे स्वीकार करें।" पेथडशाह ने कहा- 'श्रावकवर ! धन्य है, उन शीलव्रतधारियों को ! मैंने तो अभी तक आजीवन पूर्णशीलवत लेने का विचार भी नहीं किया, अत: मैं वह लाहणी लेने का अधिकारी नहीं हूं। फिर भी सहधर्मी भाई की भेंट को ठुकराना धर्म एवं शासन की अवज्ञा होगी, इसलिए मैं आज से ही गुरुवेव के समक्ष अभी पूर्णशीलवत ग्रहण करके आपकी लाहणी को स्वीकार करता हूँ।" उस श्रावक के मुंह से बरबस धन्यवाद का स्वर फूट पड़ा । पेथड शाह ने भरजवानी में, सिर्फ बत्तीस वर्ष की वय में पूर्ण ब्रह्मचर्य स्वीकार करके युवकों के लिए एक आदर्श उपस्थित कर दिया। हाँ तो, शीलवान आत्मा की एक पहचान तो यह है कि वह जनसमुदाय के समक्ष, गुरुजन हों तो उनके सान्निध्य में आजीवन पूर्ण ब्रह्मचर्य स्वीकार करता है । अगर पत्नी जीवित हो तो पति-पत्नी दोनों ही इस प्रतिज्ञा को ग्रहण कर्ते हैं । शीलवान की दूसरी पहचान यह है कि वह सदाचारी एवं सच्चरित्र होगा। सदाचार या चारित्र के अन्तर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहवृत्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430