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आनन्द प्रवचन : भाग १०
उसी विषय का अपने दिमाग में बनाया हुआ खाना बाहर निकालता हूँ और उसी में ओतप्रोत हो जाता है।"
इसी प्रकार आध्यात्मिक कार्य को सिद्ध करते समय साधक को अपनी समस्त शक्तियां उसी में लगा देनी चाहिए, अन्यथा अनवस्थित व्यक्ति उस कार्य को फूहड़ ढंग से करेगा, जिसकी प्रतिच्छाया आत्मा पर पड़े बिना न रहेगी।
बन्धुओ ! ये सब अनवस्थित और अवस्थित आत्मा को पहचानने के माध्यम हैं । आप भी अपनी आत्मा को अनवस्थित बनकर शत्रु होने से बचाएँ। अवस्थित आत्मा ही साधक को स्वर्ग और मोक्ष तक ले जा सकती है।
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