Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 360
________________ ३३६ आनन्द प्रवचन : भाग १० हो, व्यवहारिक बातों का जिसका पूरा अध्ययन हो, बात की जड़ तक पहुँच जाता हो, प्रसिद्ध हो, विद्वान् हो, साथ ही शासन को अर्थ से समृद्ध करने वाला हो।" अब हम मन्त्री के विशिष्ट गुणों पर विचार कर लेंमन्त्र-तन्त्र कुशल मन्त्री मन्त्र के द्वारा शासन की समस्याओं पर हर पहलू से विचार करता है और तन्त्र के द्वारा तदनुसार उसकी योजना और व्यवस्था करता है। मन्त्री में शासन के हित के लिए मन्त्र भी होना चाहिए और तन्त्र भी। क्योंकि कोरे मन्त्र से काम नहीं चलता, मन्त्र के साथ तदनुसार अनुष्ठान (तन्त्र) भी होना आवश्यक है। एक नीतिज्ञ कहता है कि मंत्रणाऽननुष्ठानात् शास्त्रवित्पृथिवीपतेः । नौषधिपरिज्ञानात् व्याधेः शान्तिः क्वचिद्भवेत् ॥ "शास्त्रज्ञ राजन् ! केवल मन्त्र से क्या होगा, जबकि तदनुसार अनुष्ठान नहीं किया जाये ? केवल औषधि के परिज्ञान से कहीं व्याधि शान्त होती है ?" मन्त्री के लिए परम मन्त्र (मन्त्रणा) का उद्देश्य बताते हुए नीतिकार कहते हैं अतीतलाभस्य सुरक्षणार्थ, भविष्यलाभस्य च संगमार्थम् । आपत्प्रपन्नस्य च मोक्षणार्थम, यन्मन्त्र्यतेऽसौ परमो हि मंत्रः॥ "भूतकाल में हुए लाभ की सुरक्षा और भविष्य के लाभ को प्राप्त करने के लिए तथा विपत्ति में पड़े हुए शासन, शासक या जनता को उबारने के लिए जो मंत्रणा (मन्त्र) की जाती है, वही (मन्त्री के लिए) परम मन्त्र है।" विचक्षण मन्त्री शासक के इंगित और अभिप्राय को तुरन्त पहिचान लेता है, और राजा के कहने से पहले ही, उसके कहे बिना ही अपने मन में मन्त्रणा करके तदनुसार योजना बनाकर कार्य व्यवस्था कर देता है। वसन्त ऋतु का सुहावना मौसम था। सूर्य अपनी रेशमी किरणें बिखेरकर मानो इस सुहावनेपन को अपने में समेट लेना चाहता था। ऐसे सुहावने समय में प्रकृति की शोभा निहारता हुआ एक राजा अपने मन्त्री के साथ सैर करने के लिए घने जंगल से होकर जा रहा था। एक जगह उसके घोड़े ने मूत्र त्याग किया, इससे उस जमीन में गड्ढा हो गया था, और उसमें मूत्र भर गया था। राजा आगे बढ़ गया। घने जंगल में पहुँचकर वह प्राकृतिक छटा देखने में मग्न हो गया। इसी में मध्याह्न हो गया। राजा पुनः उसी रास्ते से अपने स्थान को लौट रहा था। रास्ते में उसकी दृष्टि उसी गड्ढे पर पड़ी, जहाँ घोड़े ने मूत्र त्याग किया था। राजा यह देखकर चकित था कि गड्ढा अभी तक भरा है, उसका जल सूखा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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