Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 366
________________ ३४२ आनन्द प्रवचन : भाग १० दक्षिण भारत की एक रियासत की घटना है। वहाँ के दीवान सुजानसिंह जी वृद्ध हो गये थे, वे अपने स्थान पर किसी योग्य उत्तराधिकारी को नियुक्त करना चाहते थे; ताकि उनका बोझ हल्का हो सके। उनके कोई पुत्र न था। उन्होंने प्रजाजनों में से ही दीवान का चुनाव करने का निश्चय किया। नगर में घोषणा करवा दी कि अमुक दिन दीवान का चुनाव किया जाएगा। शर्त यह रखी कि जो टी. वी. आदि का बीमार न हो, शिक्षित चाहे कम हो, पर योग्य, कार्यकुशल और सेवाभावी हो । निश्चित दिन को मनोरंजन के लिए हाकी का खेल रखा गया। सन्ध्या समय दीवान पद के उम्मीदवाद हॉकी खेल कर आ रहे थे। मार्ग में एक नाला पड़ता था। दीवान सुजानसिंह ने किसान का वेष बनाकर बैलगाड़ी उस नाले में फंसा दी। बैलों द्वारा जोर लगाने पर भी गाड़ी आगे नहीं चल रही थी। कृषक वेशधारी दीवान गाड़ी को धक्का लगा रहा था, लेकिन वह टस से मस नहीं होती थी। बहुत-से आदमी उधर से गुजरे मगर किसी ने उसकी तरफ ध्यान न दिया। ___ अन्त में, एक व्यक्ति आया जिसके दिल में सहानुभूति की भावना थी, उसने देखा कि किसान घबरा रहा है, रात पड़ने वाली है, गाड़ी आगे नहीं चल रही है। अत: उसने किसान वेशधारी से कहा-"तुम गाड़ी को आगे से खींचो, मैं पीछे से धक्का लगाता हूँ।" उसने ऐसा ही किया। गाड़ी झट ऊपर आ गई। अब वह ठीक राह पर थी। कृषक वेशधारी ने आशीर्वाद देते हुए कहा-"भगवान् करे आप ही इस रियासत के दीवान बनें । कृषक वेशधारी ने उसका नाम-पता पूछ लिया। दूसरे ही दिन प्रातः राजसभा में सब लोगों की उपस्थिति में दीवान सुजानसिंह जी ने घोषित. किया-पं० जानकीवल्लभजी इस रियासत के नये दीवान बनेंगे। सब लोगों ने सुजानसिंहजी के मुंह से पं० जानकीवल्लभजी के कार्यक्षमता, सेवा आदि गुणों की प्रशंसा सुनकर धन्यवाद दिया। वास्तव में, जो मन्त्री कार्यार्थी हो, वही कार्यकुशल और कर्तव्य-क्षमता वाला होता है। मन्त्री के और गुणों में परमतत्त्व के प्रति बढहृदय गुण महत्त्वपूर्ण है। जिस व्यक्ति का विश्वास परमात्मा पर होगा, वह हर स्थिति में सुखी और प्रसन्न रहेगा। वह राजा को भी उसी नीति पर चलने को प्रेरित करता है। एक राजा का मन्त्री बड़ा मधुरभाषी एवं परमात्मा पर अटल श्रद्धालु था। अच्छा आचरण और शुद्ध व्यवहार करते हुए भी कोई कार्य उल्टा हो जाता तो वह कहता-"अच्छा हुआ।" एक दिन राजा और मन्त्री दोनों सैर करने के लिए बहुत दूर जंगल में निकल गये। वहाँ पेड़ में अटक जाने से राजा का अंगूठा कट गया। अतः वह खिन्न होकर महल में लौटा। वैद्य-हकीम आदि सबको बुलाया। खबर सुनकर राज्य कर्मचारी भी राजा का कुशल पूछने आये । मन्त्री भी आया, उसने राजा को आश्वासन दिया-"महाराज! आप इसे शान्ति से सहन कीजिए । होनहार होकर ही रहता है । इसके पीछे कोई न कोई शुभ संकेत है।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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