Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 389
________________ पतिव्रता लज्जायुक्त सोहती ३६५ वास्तव में लज्जा ही वह महागुण है, जिसके कारण नारी का शील, सतीत्व, चरित्र, धर्म और नीति-न्याय सुरक्षित रहता है, जो उसे अधर्म और पाप से बचाता है। सिकन्दर बादशाह के गुरु अरिस्टोटल की कन्या पीथिया बड़ी चतुर और विदुषी थी। किसी ने उससे पूछा-"गाल पर लगाने के लिए सबसे श्रेष्ठ रंग कौन सा है ?" पीथिया ने उत्तर दिया-"लज्जा !" यही सर्वश्रेष्ठ रंग है, स्त्रियों को पतिव्रतधर्म में रंगने के लिए। पतिव्रता के अन्य सभी गुण एक मात्र लज्जा में आ जाते हैं। लज्जा का गुण होगा तो उसकी बुद्धि भी सात्त्विक होगी, उसका मन भी अपने धर्म और कर्तव्य में संलग्न रहेगा, उसका शरीर भी सत्यकर्मों में जुटा रहेगा और कुकर्मों या अहितकर कार्यों से बचा रहेगा । जैसा कि, एक विचारक ने कहा है 'अनन्यचित्ता सुमुखी, सा नारी धर्मचारिणी ।' "जो अन्य पुरुषों के साथ कभी भी मन नहीं लगाती, वह स्त्री वास्तव में धर्मात्मा है।" यही कारण है कि लज्जा नारी का ऐसा अवगुंठन है, जिससे वह अपना जीवन पवित्र रख सकती है । लज्जा को लुटाने की अपेक्षा वीरांगना नारी अपने प्राणों को न्योछावर करना अधिक लाभप्रद समझती है। चाहे उसके सामने ऐश्वर्य में पूर्ण कुबेर हो, या रूप में पूर्ण कामदेव ही क्यों न हो, वह अपनी लज्जा पराये पुरुष के सामने लुटा नहीं सकती। बौद्धभिक्षु उपगुप्त से एक बार नगर की सर्वश्रेष्ठ सुप्रसिद्ध नर्तकी ने पूछा"देव ! नारी का सर्वश्रेष्ठ आभूषण क्या है ?" उत्तर मिला-"जो उसके सौन्दर्य में स्वाभाविक रूप से वृद्धि कर सके ।.... अधिक स्पष्ट उत्तर चाहती हो तो अपने समस्त आभूषण उतार डालो।" नर्तकी ने आदेश का पालन किया। "देवि ! वस्त्र भी उतार दो।" पहले तो नर्तकी हिचकिचाई, परन्तु सौन्दर्य के सर्वश्रेष्ठ उपादान पाने की महत्वाकांक्षा ने इस आदेश का भी पालन करवा ही लिया। ___ "अब मेरी ओर देखो, देवि !" किन्तु आरक्त मुख, नतनयन, हृदय में अगाध विश्वास भरकर भी वह इस आदेश का पालन न कर सकी। उपगुप्त भिक्षु उसकी ओर देखे बिना यह कहते हुए उठ खड़ा हुआ-"देवि ! नारी के सौन्दर्य का सर्वश्रेष्ठ आभूषण उसकी यह लज्जा ही है।" इसी कारण पतिव्रता नारी की वास्तविक शोभा महर्षि गौतम ने 'लज्जा' ही बताई है । श्रमणसंस्कृति के एक महान विचारक ने कहा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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