Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 401
________________ अनवस्थित आत्मा : अपना ही शत्रु ३७७ दिया, उधर की नकेल घुमा दी तो हम क्या करें ? वास्तव में आत्मारूपी गाड़ीवान का ही अपराध है कि उसने अपनी असावधानी से गाड़ी को पतन के खड्ड े में गिरा दिया । इसलिए आत्मा ही अपनी गाड़ी का शत्रु बना, क्योंकि वही जिम्मेवार है उसके लिए । रोष, अभिमान, प्रत्येक आत्मा में यह शक्ति विद्यमान है कि वह श्रेष्ठ से श्रेष्ठ वस्तु को निकृष्ट से निकृष्ट बना सकती है और निकृष्ट से निकृष्ट वस्तु को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ । आत्मा जब दुष्कर्म में प्रवृत्त होती है तो श्रेष्ठ शुद्ध आत्मा को द्वेष, काम, मत्सर, ईर्ष्या, छल आदि विकारों से विकृत करके निकृष्ट आत्मा जब क्षमा, दया, शील, सन्तोष आदि धर्मों का आचरण करती है, तपस्या से कर्मों की निर्जरा करती है, तब अपने आपको उत्कृष्ट बना लेती है और अपनी ही मित्र बन जाती है । बना देती है । वही आत्मा अपना शत्रु : कब और कैसे ? अब एक दूसरा प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि कौन ऐसी आत्मा होगी, जो स्वयं चाहती हो कि मैं पाप या पतन के खड्ढे में गिर जाऊँ, या पापाचरण करूँ ? जैसा कि मैंने पहले कहा था भ्रान्त ईश्वरवादी या पाश्चात्य परिस्थितिवादी तो ईश्वर या परिस्थिति के सिर पर दोष को डाल देते हैं, स्वयं साफ बच जाते हैं । लेकिन उन दोनों का निराकरण करके हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि किसी भी अच्छे या बुरे कर्म का जिम्मेवार आत्मा स्वयं ही है, और कोई व्यक्ति या तथाकथित परिस्थिति नहीं । विभिन्न दर्शनशास्त्रियों ने इस प्रश्न का समाधान विभिन्न रूपों में किया है । सांख्यदर्शन प्रकृति को अच्छे बुरे कर्मों की जिम्मेवार ठहराता है, वेदान्त दर्शन माया को, बौद्धदर्शन क्षणिकवाद को; परन्तु ये सब निमित्त भले ही हो सकते हैं, मूल कर्त्ता या उपादान कारण नहीं । ऐसी स्थिति में प्रश्न होता है, आत्मा ही जब आत्मा का शत्रु है, तब वह शत्र ु कब और कैसे हो जाता है ? गीता में भी अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के समक्ष यह प्रश्न निम्न शब्दों में उठाया गया है अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय ! बलादिव 'हे वृष्णिकुलभूषण ! यह आत्मा न चाहते दिया जाता हो, इस प्रकार पाप में किसके द्वारा होकर यह पापाचरण करता है ?" Jain Education International 1 पूरुषः । नियोजित: ? हुए भी मानो जबरन ही धकेल धकेला जाता है ? जिससे प्रेरित इसके उत्तर में श्रीकृष्ण ने इस प्रकार कहा हैकाम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भवः । महाशनो महापाप्मा वियेनमिह वैरिणम् ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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