Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 395
________________ अनवस्थित आत्मा : अपना हो शत्रु ३७१ पर नहीं लेता । वह सीधा भगवान पर डाल देता है कि भगवान् ने बहुत बुरा किया। भगवान् ने हम पर बहुत अत्याचार कर दिया । तात्पर्य यह है कि नादान लोग बुराईबुराई सब भगवान् के सिर पर डाल देते हैं और अच्छाई - अच्छाई सब अपने हिस्से में ले लेते हैं । ऐसे ही भ्रान्त लोगों के विषय में एक कवि कहता है अच्छा हो तो मैंने किया है, कहता है इन्सान | बुरा सब करते हैं, भगवान बुरा सब 1 धन में फूला, मोह में झूला, बकता है अज्ञान ॥ बुरा सब ॥ ध्रुव ॥ मैंने लाख करोड़ कमाया, मैंने ऊंचा भवन बनाया । कारोबार बढ़ाया, मेरी है यह सारी माया ॥ अपनी सफलताओं पर करता रहता है अभिमान ॥ बुरा ॥१॥ जब व्यापार में हो घोटाला, कहता है तब बन मतवाला । मैंने ॥२॥ ॥३॥ हाय राम ! यह क्या कर डाला ? पूर्वजन्म का वैर निकाला ॥ सुख में डूबा हुआ करे नहीं, कभी प्रभु का ध्यान ॥ बुरा लड़के लड़की खूब पढ़ाए, बी. ए., बी. टी., एम. ए. बनाए । शादी की बहू घर में लाए, तब तो मैं-मैं सदा सुनाए । मर जाए तो ईश्वर के सिर, दोष धरें नादान ॥बुरा भवार्थ बिलकुल स्पष्ट है । सभी प्राणी अपने अच्छे-बुरे कर्मों के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं । कोई भी व्यक्ति यह कहकर बच नहीं सकता कि यह बुरा कर्म मैंने नहीं किया, यह तो उसने किया था या उसके कहने से मैंने किया था, इसलिए इसके बुरे फल को मैं क्यों भोगूं ? इस प्रकार के भ्रान्त ईश्वरवादी अपने बुरे कर्मों के लिए ईश्वर को जिम्मेदार ठहराते हैं । 1 'मेरे कृत्यों का जवाबदार में नहीं हूँ', इस बात को मानने का अर्थ यह हुआ कि मेरा अध: पतन दूसरा करता है। और जब उसका अधःपतन दूसरा करता है तो उसका ऊर्ध्वगमन भी दूसरा कर सकता है । इसी भ्रान्ति में पला हुआ मानव दूसरे की ओर विवशता से देखता रहता है कि "कोई महात्मा मुझे ऐसा आशीर्वाद दे दे कि - 'बेटा तेरा भला हो जायगा ।' बस, मैं सीधे स्वर्ग में पहुँच जाऊँ ।" ऐसा सस्ता सौदा मिल जाए तो ज्ञान-दर्शन- चारित्र तप की साधना करने की क्या जरूरत है ? अमेरिका में आजकल एक नवीन तत्त्वज्ञान उभर आया है कि अपराधी को अपराधी न समझकर मानसिक रोगी समझो। वहाँ का अपराध विज्ञान बदल गया है । उनका तत्त्वज्ञान कहता है कि स्कूल के लड़कों को अनुचित या उलटे कार्य के लिए दण्ड नहीं देना चाहिए, क्योंकि उसके अयोग्य कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होगा, उसे मां-बाप का प्यार नहीं मिला होगा, या उसमें किसी प्रकार की ग्रन्थि बनी होगी । श्रीमती एलेक्सीस ने इस सन्दर्भ में अपनी 'Man, the Unknown ' (मैन, द अननोन ) नामक पुस्तक में अनेक उदाहरण देकर अमेरिका में पनपती इस विचारधारा के प्रति अपनो व्यथा प्रगट की है । Jain Education International ... For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430