Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 384
________________ ३६० आनन्द प्रवचन : भाग १० पत्नी का ऐसा सत्याग्रह देखकर न्यायाधीश के मन में द्वन्द्व मच गया। एक ओर लोभ था, दूसरी ओर पत्नी के जीवन-मरण का प्रश्न था । आखिरकार उन्हें लोभ को दबा देना पड़ा। वे चुपचाप नकद रुपये तथा अन्य सब भेंट की सामग्री वापस लौट आए । अब न्यायाधीश के मन को शान्ति थी। पत्नी के चेहरे पर भी न्याय-नीति की विजय का सन्तोष था। यह एक ज्वलन्त उदाहरण है, धर्मपत्नी द्वारा कुमार्ग पर जाते हुए पति को सुमार्ग-धर्ममार्ग पर लाने का । इसीलिए उपासकदशांग आदि सूत्रों में पत्नी के लिए सुन्दर विशेषणों का प्रयोग किया गया है___"मारिया, धम्मसहाइया, धम्मविइज्जिया, धम्माणुरागरत्ता, समसुहदुक्ख सहाइया।" "धर्मपत्नी (भार्या) धर्म में सहायता करने वाली, धर्मविज्ञ, धर्मानुराग से रक्त, तथा सुख-दुःख में समान रूप से सहायिका होती है।" __ आदर्श पतिव्रता स्वयं कष्ट सह लेती है, लेकिन पति को कष्ट नहीं होने देती । वह अपने पति को तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठाकर परमार्थ के पथ पर चलने को. प्रेरित करती है । एक छोटे से स्वार्थ को तिलांजलि देकर बड़े स्वार्थ के लिए वह पति को प्रेरणा देती है। जब श्रीमती कमला नेहरू रुग्ण दशा में स्विट्जरलैण्ड में थीं, पं० नेहरू उनके पास थे । भारत से तार आया- "शीघ्र चले आओ, भारतमाता के लाल माँ की बेड़ियों को काटने के लिए तुम्हारा आह्वान करते हैं ।" तार पढ़कर नेहरूजी की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। एक तरफ पत्नी मरणासन्न और दूसरी ओर भारत माता की पुकार ! वे किंकर्तव्यविमूढ़ होकर चिन्तामग्न हो गये । कमलाजी ने पति को चिन्तित देख पूछा-"उदास क्यों हो?" । उत्तर मिला-कुछ नहीं।" कमला बोलीं- "बात कुछ अवश्य है। आप मुझसे कभी कोई बात छिपाते नहीं, फिर आज चोरी क्यों ?" ___ जवाहरलालजी ने मौन तोड़कर स्पष्ट कर दिया-“एक ओर तुम इस दशा में हो, दूसरी ओर भारतमाता का आह्वान है। यदि तुम्हारे मोह में मैं तुम्हारे पास रहता हूँ तो दुनिया कहेगी-कैसा स्वार्थी है, जवाहर, चालीस करोड़ जनता की परवाह न करके माया-जाल में फंस गया। और यदि जाता हूँ तो तुम कहोगी कि अन्तिम समय में भी साथ न दिया।" कमलाजी ने भारत की पतिव्रता-परम्परा के अनुसार उत्तर दिया-"प्राणनाथ ! तुम मेरी चिन्ता न करो । मैं ठीक हो जाऊँगी। तुमको माता स्वरूपरानी ने कमला के लिए नहीं, अपितु चालीस कोटि भारतमाता के पुत्रों की पराधीनता की बेड़ियों को काटने के लिए जन्म दिया है । तुम्हें अविलम्ब भारत चले जाना चाहिए।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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