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३५२ आनन्द प्रवचन : भाग १०
दोषों की चर्चा मेरे सामने न करें । सदा अपने पति के गुणों को ही देखना-सुनना चाहती हूँ ।"
यह सुनकर ननद चुप हो गई ।
पतिव्रता का पति के साथ सम्बन्ध आत्मा का है
भारतीय धर्मग्रन्थों के अनुसार इस देश में पति-पत्नी का सम्बन्ध आत्मा से आत्मा का सम्बन्ध माना गया है। दोनों का केवल शारीरिक सम्बन्ध ही माना जाए तो उससे काम, कामना, स्वार्थ, मोह, राग-द्वेष आदि विकार ही अधिक प्रादुर्भूत होंगे । पतिव्रता पति को अपना सर्वस्व समर्पण करती है, उसके पीछे यही भावना रही हुई है कि पति की आत्मा के साथ अपनी आत्मा का सम्बन्ध केवल शारीरिक सम्बन्ध ही होता तो पति के मरने के बाद शरीर उस सम्बन्ध को खत्म कर देती, पति की आत्मा की शान्ति के लिए वह (पत्नी) कुछ भी न करती, अथवा पति के ब्रह्मचर्यव्रत या साधु दीक्षा ले लेने पर शरीर सम्बन्ध खत्म कर देती; परन्तु भारतीय नारी तो ऐसा कदापि नहीं सोच सकती ।
बंध गया है । वह
के खत्म होते ही
यही कारण है कि महासती राजीमती ने तीर्थंकर अरिष्टनेमि द्वारा मुनिदीक्षा का पथ अंगीकार कर लेने के बाद उनके साथ विवाह न होने की स्थिति में पति द्वारा अंगीकृत आध्यात्मिक पथ को ही अंगीकार कर लिया था । जैन इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं कि पति के जीते-जी या पति की मृत्यु के बाद अथवा पति द्वारा मुनिजीवन अंगीकार करने की स्थिति में पत्नी ने भी दीक्षा अंगीकार कर अपने आत्मिक सम्बन्धों निभाया है ।
इसके ठोस प्रमाण हमें भारतीय नारी के जीवन में मिलते हैं, चाहे वर्तमान युग की भारतीय नारी इस विषय में पिछड़ गई हो, फिर धर्म एक प्रकार की उच्चस्तरीय भाव साधना रही है, जिससे उद्दीप्त होता है, उसमें आत्मिक गुणों का आविर्भाव होता और ढ़ता आती है । आत्मिक सम्बन्धों की पूर्णता के लिए पतिव्रता सौष्ठव, लक्ष्मी, सुख-सुविधाएँ, भोग साधन आदि सबको गौण मानती आई है ।
भी यहाँ पतिव्रत
नारी का आत्मबल
इसीलिये यहाँ के दाम्पत्य जीवन में सरसता पाई जाती है, क्योंकि उसके साथ आत्मीय सम्बन्ध की विशिष्ट भावनाएँ जुड़ी हुई हैं । इन्हीं के सहारे पतिव्रत धर्म का निर्वाह भी सुखरूप हो गया है, उसमें भौतिक कारण प्रतिबन्ध नहीं डाल पाते । इसीलिए पतिव्रता नारी के विषय में कहा गया है
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कर्तव्य पालन की नारी सौन्दर्य, अंग
पंगुमन्धं च कुब्जं च कुष्टांगं व्याधिपीडितम् । आपत्सु च गतं नाथं, न त्यजत् सा महासती ॥
" वह पतिव्रता महासती पंगु, अन्धे, कुबड़े, कोढ़ से ग्रस्त तथा व्याधि से पीड़ित या आफतों में पड़े हुए अपने पति को नहीं छोड़ती, वह निरन्तर अम्लान भाव से उसकी सेवा करती है।"
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