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ब्रह्मचारी विभूषारहित सोहता २६५ जब शरीर का बनाव-श्रृंगार करने में ब्रह्मचारी लग जाता है, तब वह स्वयं अपने हाथों से अपने वर्षों से साधित ब्रह्मचर्य को नष्ट कर देता है, क्योंकि वह अपने आन्तरिक सौन्दर्य को भूलकर बाह्य सौन्दर्य के प्रदर्शन के लिए शरीर को सजातीसंवारता है। इसका परिणाम यह होता है कि उसके बाह्य रूप की आग में कोई न कोई कामुक पतंगा आकर भस्म हो जाता है । अथवा विभूषाजीवी व्यक्ति स्वयं दूसरे की विभूषा या शृंगार देखकर फिसल जाता है, ब्रह्मचर्य से उसका मन डिग जाता है। इसलिए शास्त्रकारों ने ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों में 'विभूषावर्जन' नामक एक गुप्ति भी बताई है।
महात्मा गांधी ब्रह्मचर्य-साधना के लिए विभूषावर्जन आवश्यक मानते थे। वे स्वयं कहा करते थे-जिसे ब्रह्मचर्य पालन करना है, उसे इन नाज-नखरों और बनाव-शृंगारों से क्या मतलब है ? इनमें अपना समय व्यर्थ नष्ट कर देगा तो वह साधना कब करेगा?
महात्मा गांधी के आश्रम में एक जवान लड़की अपनी माता के साथ रहती थी। वह लड़की आश्रम के सुसंस्कारों में प्रशिक्षित होने आयी थी। उसके बड़े-बड़े सजाए-संवारे हुए बाल देखकर आश्रमवासी एक युवक उस लड़की की ओर आकर्षित होता था। गांधीजी को इस बात का पता लगा। उन्होंने लड़की को बुलाकर स्नेहपूर्वक समझाया और उसी दिन उसके लम्बे और आकर्षक बाल कटवा दिये, उसको सादी मोटी खादी की पोशाक पहनने की हिदायत दे दी। परिणाम यह हुआ कि उस युवक का उस जवान लड़की के प्रति जो आकर्षण था, वह दूसरे ही दिन से समाप्त हो गया। युवक को भी गांधीजी ने समझाकर उस आश्रम-कन्या के प्रति भगिनीभाव रखने की हिदायत दी।
इंगलैण्ड के एक धनिक की मौज-शौक में पली हुई पुत्री मेडलीन स्लैड ने रोम्यां रोला से महात्मा गांधी की महिमा सुनी तो उसकी इच्छा आश्रमी जीवन में अपने आपको ढालने की हुई। मिस स्लैड ने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखा, साथ में ऊन के कुछ नमूने और हीरे की अंगूठी बेचने से प्राप्त हुई धनराशि भेंट स्वरूप प्रेषित की। महात्मा गांधी ने उसका पत्र पढ़कर संक्षिप्त उत्तर लिखा“संकल्प दृढ़ हो तो भारत आ जाओ।" भारत की यात्रा करने से पूर्व परिवार के सदस्यों ने उसे बहुत कुछ समझाया, पर वह दृढ़ निश्चय कर चुकी थी।
भारत आकर स्लैड इलाहाबाद पहुँची। गांधीजी उन दिनों वहीं थे । सामने पहुँचकर घुटनों तक झुककर स्लैड ने प्रणाम किया। गांधीजी ने अपने हाथ से उठाते हुए कहा-"आज से तुम मेरी पुत्री हुई।" उन्होंने अपनी इस पुत्री का नाम 'मीरा' रखा । गांधीजी ने मीरा को सर्वप्रथम आदेश आश्रम के शौचालय की सफाई का दिया। किन्तु वह इस आदेश से जरा भी विचलित न हुई । क्योंकि Work is worship' 'कर्म ही पूजा है' यह उसने इंग्लैण्ड में भी सीखा था।
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